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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद-७
हैं। बाह्य अर्थके अभाव में स्वपक्षसिद्धि और परपक्ष दूषणका कोई प्रयोजन शेष नहीं रहता है । बाह्य अर्थके अभाव में भी यदि साधन और दूषणका प्रयोग किया जाय तो स्वप्नप्रत्यय और जाग्रत् प्रत्यय में भी कोई भेद नहीं रहेगा । फिर किसी प्रमाणके द्वारा किसीकी सिद्धि और किसी में दूषण कैसे संभव है । बाह्य अर्थके अभाव में भी साधनका प्रयोग होनेसे विज्ञानाद्वैतवादी सहोपलंभनियमरूप हेतुसे विज्ञानाद्वैतकी सिद्धि कैसे कर सकेगा। क्योंकि विज्ञानके अभाव में भी साधनका प्रयोग संभव है । सन्तानान्तरकी सिद्धि भी कैसे हो सकेगी । स्वसन्तानकी सिद्धि तथा स्वसंतान में क्षणिकत्व आदिकी सिद्धि भी कैसे हो सकेगी तात्पर्य यह है कि बाह्य अर्थके अभाव में भी साधन और दूषणका प्रयोग मानने से किसी भी अर्थकी सिद्धि नहीं हो सकती है । यतः साधन और दूषणका प्रयोग देखा जाता है, अतः बाह्य अर्थका सद्भाव मानना आवश्यक है ।
विज्ञानाद्वैतवादी कहते हैं कि जैसे तिमिर रोग वाले पुरुषको एकचन्द्रमें भी दो चन्द्रका ज्ञान हो जाता है, किन्तु वह ज्ञान भ्रान्त है, उसी प्रकार बाह्य अर्थका जो ज्ञान होता है, अथवा ज्ञान और ज्ञेयका जो व्यवहार होता है, वह सब भ्रान्त है । विज्ञानाद्वैतवादीके इस कथन की सत्यता तभी हो सकती है, जब तत्त्वज्ञानको प्रमाण माना जाय । क्योंकि अर्थके व्यवहारमें भ्रान्तताकी सिद्धि तत्त्व ज्ञानसे ही हो सकती है । यहाँ प्रश्न यह है कि तत्त्वज्ञान प्रमाण है या नहीं । यदि वह प्रमाण नहीं है, तो उसके द्वारा अर्थके व्यवहारमें भ्रान्तताकी सिद्धि नहीं हो सकती है, और यदि वह प्रमाण है, तो सर्वव्यवहार भ्रान्त नहीं हो सकता है, क्योंकि प्रमाण व्यवहारको तो अभ्रान्त मानना ही पड़ेगा। क्योंकि अभ्रान्त प्रमाणके न मानने पर विज्ञानाद्वैतकी भी सिद्धि नहीं ही सकती है । जिस प्रकार विज्ञानाद्वैतवादी बाह्य अर्थका निराकरण करता है, उसी प्रकार प्रमाणके अभाव में विज्ञानका निराकरण भी स्वयं हो जायगा । परमाणु आदिके विषय में दूषण देनेमें भी तत्त्वज्ञानको प्रमाण मानना आवश्यक है । प्रमाणके विना किसीमें भी दूषण नहीं दिया जा सकता है । इष्टसाधन और अनिष्टदूषण प्रमाणके द्वारा ही संभव हो सकते हैं । इसलिए प्रमाणका सद्भाव माने विना काम नहीं चल सकता है । जब प्रमाणके अभाव में विज्ञानकी सन्तानका निश्चय करना भी कठिन है, तब बहिरर्थका अभाव बतलाना तो नितान्त अयुक्त हैं । यद्यपि बाह्य अर्थके परमाणु अदृश्य हैं, फिर भी स्कन्धके दृश्य होनेसे स्कन्धाकार परिणत परमाणुओंका
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