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कारिका-७८] तत्त्वदीपिका
२६१ अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों का साक्षात्कार करना आप्ति है, अथवा सम्प्रदायका विच्छेद न होना आप्ति है। साक्षात्कार आदि गुणोंके विना पदार्थका प्रतिपादन करना वैसा ही है, जैसे एक अन्धा व्यक्ति दूसरे अन्धे व्यक्तिको मार्ग-दर्शन कर रहा हो । सम्प्रदायके अविच्छेदका तात्पर्य यह है कि सर्वज्ञसे तत्प्रणीत आगम होता है, और आगमके अर्थका अनुष्ठान करनेसे कोई पुरुष सर्वज्ञ बन जाता है। और वही आप्त कहलाता है।
इसलिए कोई पदार्थ कथंचित् हेतुसे सिद्ध होता है, क्योंकि उसमें इन्द्रिय, आगम आदिकी अपेक्षा नहीं होती है, कोई पदार्थ कथंचित् आगमसे सिद्ध होता है, क्योंकि उसमें हेतु, इन्द्रिय आदिकी अपेक्षा नहीं होता है । इसी प्रकार कोई पदार्थ कथंचित् दोनों प्रकारसे सिद्ध होता है। पदार्थ कथंचित् अवक्तव्य भी है । इत्यादि प्रकारसे पदार्थोंकी हेतुसे सिद्धि और आगमसे सिद्धिमें पहलेकी तरह सप्तभंगी प्रक्रियाको लगा लेना चाहिए।
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