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कारिका-७२] तत्त्वदीपिका
२४७ एक हैं। इसीप्रकार कथंचित् उभय हैं, कथंचित् अवक्तव्य हैं, कथंचित् नाना और अवक्तव्य हैं। कथंचित् एक और अवक्तव्य हैं, कथंचित् उभय और अवक्तव्य हैं। इस प्रकार द्रव्य और पर्यायके भेदाभेदके विषयमें सत्त्व, असत्त्व आदि धर्मोकी तरह सप्तभंगीकी प्रक्रियाको समझ लेना चाहिए।
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