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आप्तमीमांसा
परिच्छेद ३
कुण्डल बनवा लिया जाता है, कुण्डलको तुड़वाकर चूड़ा, चूड़ाको तुड़वाकर अँगूठी आदि कोई भी आभूषण बनवा लिया जाता है । किन्तु प्रत्येक पर्याय में स्वर्णका अन्वय पाया जाता है । जब प्रत्येक पर्यायमें वही द्रव्य बना रहता है, तो यह स्पष्ट है कि द्रव्यका उत्पाद और विनाश नहीं होता है । उत्पाद और विनाश पर्यायका होता है । एक पर्याय नष्ट होती है, और दूसरी पर्याय उत्पन्न हो जाती है । किन्तु उन सब पर्याय में 'यह वही द्रव्य है' इस प्रकार द्रव्यका अन्वय सदा बना रहता है । नख, केश आदिके काटे जाने के बाद पुनः उनके निकलनेपर 'ये वही नख, केश हैं,' इस प्रकारका जो एकत्व ज्ञान होता है, वह भ्रान्त है । किन्तु एक विषय में किसी ज्ञानके भ्रान्त होनेसे सब विषयोंमें उसको भ्रान्त कहना वैसा ही है, जैसे एक पुरुषके असत्यवादी होनेसे सबको असत्यवादी कहना । अतः अन्वयकी अपेक्षासे वस्तु धौव्यरूप है, और विशेषकी अपेक्षासे उत्पाद - विनाशरूप है ।
उत्पाद आदि तीनों परस्परमें पृथक्-पृथक् नहीं हैं, किन्तु उत्पाद आदि तीनों समुदायका नाम ही वस्तु है । उत्पादादिके समुदायका नाम वस्तु है, यह कथन कल्पित नहीं है, किन्तु प्रमाणसिद्ध है । वस्तुके कृतक होनेसे उत्पाद - विनाशकी सिद्धि और अकृतक होनेसे धौव्यकी सिद्धि होती है । वस्तुमें जो पूर्व स्वभावका त्याग और उत्तर स्वभावका उपादान होता है, वह दूसरे द्वारा किया जाता है । अतः वस्तु कृतक है । और उसके ध्रौव्य स्वभाव के लिए किसीकी अपेक्षा न होने से वह अकृतक है | चेतन पदार्थ हो या अचेतन, किसीकी भी उत्पत्ति द्रव्यकी अपेक्षासे नहीं होती है । जो सामान्यरूपसे सत् है उसमें किसी पर्याय विशेषकी उपलब्धि होनेसे उसकी उत्पत्ति कही जाती है, जैसे मिट्टी में घटरूप पर्याय विशेषकी उपलब्धि होनेसे मिट्टीकी उत्पत्ति मानी जाती है । जो ध्रौव्यरूप है, उसीकी उत्पत्ति और विनाश होता है । तथा जो उत्पाद और विनाशरूप है, उसीमें धौव्यत्व पाया जाता है । इस प्रकार वस्तुमें उत्पाद आदि तीनकी सिद्धि होती है ।
प्रत्येक पदार्थमें परिणमन करनेका विशिष्ट स्वभाव रहता है । तन्तुओं का स्वभाव पटरूपसे परिणमन करनेका है, घटरूपसे परिणमन करनेका नहीं । मिट्टी में घटरूपसे परिणमन करनेका स्वभाव है, पटरूपसे परिणमन करनेका नहीं । प्रत्येक पदार्थ में जिस पर्यायरूप परिणमन करनेका स्वभाव होता है, वह उसीरूपसे परिणमन करता है । मिट्टी में घट
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