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कारिका - ३ ]
तत्त्वदीपिका
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भावना संस्कार और शब्द ये अमूर्त गुण हैं । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग और विभाग ये उभय गुण हैं । संयोग, विभाग और द्वित्व आदि संख्या ये गुण अनेक द्रव्योंके आश्रित होते हैं। शेष समस्त गुण एकद्रव्याश्रित हैं । रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, स्नेह, सांसिद्धिक द्रवत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म, भावना और शब्द ये विशेष गुण हैं । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, नैमित्तिक द्रवत्व और वेग ये सामान्य गुण हैं । शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये बाह्य एक एक इन्द्रियके द्वारा ग्राह्य होते हैं । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, स्नेह और वेग ये दो इन्द्रियोंसे ग्रहण किये जाते हैं । बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष और प्रयत्न ये मनसे ग्रहण किये जाते हैं । गुरुत्व, धर्म, अधर्म और भावना ये अतीन्द्रिय गुण हैं ।
कर्म - जो एक द्रव्यके आश्रित हो, गुणरहित हो तथा संयोग और विभागका निरपेक्ष कारण हो, वह कर्म है। कर्म के ५ भेद हैं- उत्क्षेपण, अपक्षेपण, आकुञ्चन, प्रसारण और गमन ।
गुरुत्व, प्रयत्न और संयोगके द्वारा किसी वस्तुका ऊपर के प्रदेशों के साथ संयोग और नीचे के प्रदेशोंके साथ विभाग होनेका नाम उत्क्षेपण है । गुरुत्व, प्रयत्न और संयोगके द्वारा किसीका ऊपरके प्रदेशों के साथ विभाग और नीचे के प्रदेशों के साथ संयोग होनेका नाम अवक्षेपण है । किसी वस्तुका सिकोड़ना आकुञ्चन है । किसी वस्तुका फैलाना प्रसारण है । और गमन करनेका नाम गमन है । भ्रमण, निष्क्रमण आदिका गमनमें अन्तर्भाव होजानेके कारण कर्म ५ ही हैं, अधिक नहीं । कर्म केवल द्रव्यमें ही पाया जाता है । द्रव्यमें भी पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और मन इन पाँच द्रव्यों में ही कर्म पाया जाता है ।
सामान्य - जिसके कारण वस्तुओंमें अनुगत (सदृश) प्रतीति होती है, वह सामान्य है। सामान्य एक, व्यापक और नित्य है । इसके दो भेद हैं
१. एकद्रव्यमगुणं संयोग विभागेष्वनपेक्ष कारणमिति कर्मलक्षणम् ।
२. सामान्यं द्विविधं प्रोक्तं परं चापरमेव च । द्रव्यादित्रिवृत्तिस्तु सत्ता परतयोच्यते ॥ परभिन्ना च या जातिः सैवापरतयोच्यते । द्रव्यत्वादिकजातिस्तु परापरतयोच्यते ॥
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- वैशे० सू० १|१|१७ ।
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- कारिकावली का ० ८, ९ ।
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