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तत्त्वदीपिका
कारिका-५ ]
हैं, कोई न कोई उनको प्रत्यक्षसे भी जानता है । जैसे पर्वतमें अग्निको दूरवर्ती पुरुष अनुमानसे जानता है, किन्तु पर्वतपर रहनेवाला पुरुष उसीको प्रत्यक्षसे जानता है । इस प्रकार धर्मादि समस्त पदार्थोंको जानने वाले सर्वज्ञकी सिद्धि होती है ।
जिनका स्वभाव इन्द्रियोंसे नहीं जाना जा सकता उनको सूक्ष्म (स्वभावसे विप्रकृष्ट) कहते हैं, जैसे परमाणु आदि । अतीत और अनागत कालवर्ती पदार्थोको अन्तरित (कालसे विप्रकृष्ट) कहते हैं, जैसे राम,
रावण आदि । जिनका देश दूर है उनको दूरार्थ (देशसे विप्रकृष्ट) कहते हैं, जैसे सुमेरु पर्वत आदि । सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थोंका ज्ञान इन्द्रियोंसे नहीं हो सकता है । क्योंकि इन्द्रियाँ केवल स्थूल, वर्तमान और निकटवर्ती अर्थको जानती हैं । अतः हम लोग परमाणु आदिका ज्ञान अनुमान प्रमाणसे करते हैं । 'परमाणुओंकी सत्ता है । यदि परमाणु न होते तो घट आदि कार्योंकी उत्पत्ति कैसे होती ।' इस प्रकारके अनुमानसे परमाणुका ज्ञान किया जाता है । जिन पदार्थोंका ज्ञान अल्पज्ञ प्राणी अनुमान से करते हैं उनको प्रत्यक्षसे जानने वाला भी कोई पुरुष अवश्य होना चाहिये । ऐसा नियम देखा जाता है कि जो पदार्थ अनुमानसे जाने जाते हैं वे पदार्थ प्रत्यक्षसे भी जाने जाते हैं । जैसे दूरवर्ती पुरुष पर्वत में स्थित अग्निको 'पर्वतोऽयं वह्निमान् धूमवत्वात्', 'इस पर्वत में अग्नि है क्योंकि वहाँ धूमका सद्भाव है', इस अनुमानसे जानता है, तो पर्वतपर रहने वाला दूसरा पुरुष उसी अग्निको प्रत्यक्षसे जानता है । ऐसा नहीं है कि पर्वत में जिस अग्निको दूरवर्ती पुरुष अनुमानसे जानता है उसको प्रत्यक्षसे जानने वाला कोई न हो । यही बात परमाणु आदिके विषयमें है । सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों को हम अनुमानसे जानते हैं । अतः कोई न कोई पुरुष ऐसा अवश्य होना चाहिये जो उन पदार्थोंको प्रत्यक्ष से जानता हो । उन पदार्थोंको साक्षात् जानने वाला जो पुरुष है वही सर्वज्ञ है । इस प्रकार अनुमान प्रमाणसे सर्वज्ञकी सिद्धि होती है । पहिले मीमांसकने कहा था कि सर्वज्ञकी सिद्धि करने वाला कोई प्रमाण नहीं है । किन्तु 'सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः कस्यचित् प्रत्यक्षा अनुमेयत्वात्' इस अनुमानसे सर्वज्ञकी सिद्धि होने के कारण मीमांसकका उक्त कथन ठीक नहीं है ।
यदि कोई यह कहे कि देश, काल और स्वभावसे विप्रकृष्ट पदार्थ अनुमानसे भी नहीं जाने जाते हैं, तो इस प्रकार कहनेवाले मीमांसक के यहाँ अनुमान प्रमाणका ही अभाव हो जायगा । अनुमान उन्हींका किया जाता है जिनको इन्द्रियप्रत्यक्षसे नहीं जाना जा सकता । इन्द्रियप्रत्यक्ष से जाने
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