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कारिका-१८] तत्त्वदीपिका
१६५ कारण होती है, तो संवृतिमें भी जो विशेषण, विशेष्य आदि रूपसे अनेकत्वकी प्रतीति होती है वह किस कारणसे होती है। अनेक आकारात्मक संवृति ही स्वयं इस बातको सिद्ध करती है कि पदार्थ अनेकातात्मक हैं । यह कैसे कहा जा सकता है कि संवृति तो अनेकान्तात्मक है, परन्तु पदार्थ अनेकान्तात्मक नहीं हैं। पदार्थोंको अनेकान्तात्मक सिद्ध होनेसे यह बात निश्चित हो जाती है कि गगन और गगनकुसुमका अभाव ये दोनों एक ही वस्तु नहीं हैं, किन्तु भिन्न-भिन्न हैं। ___ इस प्रकार गगनकुसुममें अनित्यत्व और प्रमेयत्व दोनोंका अभाव होनेसे दोनोंका व्यतिरेक पाया जाता है। अतः प्रमेयत्व हेतु केवल अन्वयी ही नहीं है किन्तु व्यतिरेकी भी है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रत्येक हेतुमें परस्परमें अविनाभावी साधर्म्य और वैधर्म्य दोनों धर्म पाये जाते हैं। जिस प्रकार हेतुमें साधर्म्य वैधयंका अविनाभावी है, उसी प्रकार वस्तुमें अस्तित्व नास्तित्वका अविनाभावी है । एक पदार्थकी दूसरे पदार्थसे जो व्यावृत्ति है, वह न तो सर्वथा भावात्मक है और न सर्वथा निःस्वभाव या मिथ्या है । बौद्ध मानते हैं कि अन्यव्यावृत्ति वस्तुका स्वभाव नहीं है । यदि ऐसा है तो वस्तु केवल एकरूप होगी और अन्य वस्तुओंसे उसमें कुछ भी भेद सिद्ध न होगा। अतः अस्तित्वकी तरह अन्यव्यावृत्ति (नास्तित्व ) भी वस्तुका स्वभाव है । वस्तुमें जो विशेषण होता है वह प्रतिषेध्यसे अविनाभावी होता है। अतः वस्तुमें अस्तित्व विशेषण अपने प्रतिषेध्य नास्तित्वका अविनाभावी है, जैसे कि हेतूमें साधर्म्य वैधयंका अविनाभावी है। इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि अस्तित्वकी तरह नास्तित्व भी वस्तुका स्वरूप है।
यहाँ कोई कहता है-यह ठीक है कि अस्तित्व नास्तित्वका अविनाभावी है। किन्तु नास्तित्व अस्तित्वका अविनाभावी कैसे हो सकता है। आकाशपुष्पमें किसी भी प्रकार अस्तित्व संभव नहीं है। इसके उत्तरमें आचार्य कहते हैं
नास्तित्व प्रतिषेध्येनाविनाभाव्येकधर्मिणि ।
विशेषणत्वाद्वैधयं यथाऽभेदविवक्षया ॥१८॥ एक ही वस्तुमें विशेषण होनेसे नास्तित्व अपने प्रतिषेध्य अस्तित्वका अविनाभावी है। जैसे हेतुमें वैधर्म्य साधर्म्यका अविनाभावी होता है।
पहले बतलाया जा चुका है कि अस्तित्व और नास्तित्व ये परस्पर
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