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कारिका-१७] तत्त्वदीपिका
१६३ है, वह प्रमेय नहीं होता है, जैस गगन कुसुम । यहाँ गगन कुसुमसे साध्य-साधन दोनोंका व्यतिरेक होनेसे प्रमेयत्व हेतु व्यतिरेकी भी है । ____ गगनकुसुममें भी जो लोग प्रमेयत्वका व्यवहार करना चाहते हैं उनके यहाँ प्रमेय और प्रमेयाभावकी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती है। प्रमेयाभावको भी प्रमेय होनेसे प्रमेय क्या है, और प्रमेयाभाव क्या है, इसका कोई नियामक ही नहीं रहेगा। 'खपुष्पमप्रमेयम्' 'गगनकुसुम अप्रमेय है' ऐसा कहने पर भी गगनकुसुम प्रमेय नहीं होता है । जिस प्रकार बौद्धोंके अनुसार प्रत्यक्षको कल्पनापोढ कहने पर भी वह कल्पनापोढ शब्दके द्वारा कल्पना सहित नहीं होता है । तथा स्वलक्षणको अनिर्देश्य कहने पर भी वह अनिर्देश्य शब्दके द्वारा निर्देश्य नहीं होता है। उसी प्रकार 'गगनकुसुम अप्रमेय है' ऐसा कहने पर वह अप्रमेय शब्दके द्वारा भी प्रमेय नहीं होता है। गगनकुसुम प्रमेय तब हो सकता है जब वह प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाणका विषय हो । गगनकुसुम प्रत्यक्षका विषय नहीं होता है, क्योंकि गगनकुसुमसे प्रत्यक्षकी उत्पत्ति नहीं होती है, और न प्रत्यक्षमें गगनकुसुमका आकार आता है । गगनकुसुमका न तो कोई स्वभाव है, और न कोई कार्य भी है। अतः स्वभाव तथा कार्य हेतुके अभावमें अनुमान प्रमाणकी उत्पत्ति भी कैसे हो सकती है, जिससे वह अनुमान प्रमाणका विषय हो सके। फिर भी यदि गगनकुसुम प्रमेय है तो उसे प्रत्यक्ष और अनुमानसे अतिरिक्त किसी तीसरे प्रमाणका प्रमेय मानना होगा। किन्तु तृतीय प्रमाण बौद्धोंको इष्ट नहीं है। ऐसा मानना भी ठीक नहीं है कि गगनको छोड़कर अन्य कोई गगनकुसुमका अभाव नहीं है, किन्तु गगनका नाम ही गगनकुसुमका अभाव है। क्योंकि भाव और अभाव सर्वथा एक नहीं हो सकते हैं। एक ही पदार्थको भावरूप तथा अभावरूप मानने में तो कोई विरोध नहीं है, परन्तु वह पदार्थ जिस रूपसे भावरूप है, उसी रूपसे अभावरूप भी है, ऐसा मानने में विरोध आता है। गगन और गगनकुसुमका अभाव ये सर्वथा एक नहीं हो सकते हैं। आकाशमें आकाशका व्यवहार और आकाश पुष्पके अभावका व्यवहार स्वभावभेदके विना नहीं हो सकता है । आकाश अपने स्वरूपको अपेक्षासे है और आकाशकुसुम आदि पररूपकी अपेक्षासे नहीं है ।
इस प्रकार जितने पर पदार्थ हैं, उनकी अपेक्षासे वस्तुमें उतने ही स्वभावभेद होते हैं। घट पटकी अपेक्षासे नहीं है, यह घटका एक
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