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आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१ भिन्न स्वभाव है। घट पुस्तककी अपेक्षासे नहीं है, यह भी घटका एक भिन्न स्वभाव है। इस दृष्टिसे घटमें पर पदार्थोंकी अपेक्षासे अनन्त स्वभावभेद होते हैं। यदि पर पदार्थके निमित्तसे स्वभावभेद न माने जावें तो घट पट नहीं है, पुस्तक नहीं है, इत्यादि रूपसे घटमें जो शब्दव्यवहार देखा जाता है उसका अभाव हो जायगा। घटमें वैसा संकेत भी नहीं हो सकेगा। अत: यह सुनिश्चित है कि दूसरे पदार्थों के निमित्तिसे पदार्थ में स्वभावभेद होता है। गगन और गगनकुसुमका अभाव एकाही वस्तु नहीं है। यदि दूसरे पदार्थों के निमित्तसे वस्तुमें स्वभावभेद न हो, तो बौद्धोंका यह कहना कैसे ठीक हो सकता है, कि नित्य पदार्थ क्रमवर्ती सहकारी कारणोंकी सहायतासे कार्य नहीं कर सकता है, क्योंकि नित्य एक स्वभाववाला है, और नाना सहकारी कारणोंकी सहायतासे कार्य करनेमें उसके नाना स्वभाव हो जायेंगे। बौद्ध यदि पर पदार्थके निमित्तसे वस्तुमें स्वभावभेद नहीं मानेंगे तो नित्य पदार्थमें भी क्रमवर्ती सहकारी कारणोंके द्वारा कोई स्वभावभेद नहीं होगा, और नित्य पदार्थ एक स्वभावको धारण करते हुए भी क्रमवर्ती सहकारी कारणोंकी सहायतासे कार्य कर सकेगा। इसलिए जब बौद्ध यह मानते हैं कि अन्य पदार्थ किसी वस्तुके स्वभावके भेदक होते हैं, तब स्वलक्षण और अन्यापोह ये एक कैसे हो सकते हैं। स्वलक्षण भिन्न है, और अन्यापोह भिन्न है । गगन पृथक् है, और गगमकुसुमका अभाव पृथक है। गगन और गगनसुमनका अभाव एक ही वस्तु है, ऐसा किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है। जितने भी पदार्थ हैं, वे सब अस्तित्व और नास्तित्वसे सम्बद्ध हैं। पदार्थों में जो विधि और निषेधका व्यवहार होता है, वह काल्पनिक नहीं है किन्तु पारमाथिक है।
बौद्ध मानते हैं, कि तत्त्व ( स्वलक्षण ) अवाच्य है । और उसमें विधि-निषेध व्यवहार संवृति ( कल्पना )से होते हैं । उक्त कथन सर्वथा असंभव है । यदि वास्तवमें पदार्थ अस्तित्व, नास्तित्व आदिरूपसे अनेक स्वभाववाला न हो, तो इसका अर्थ यह होगा कि पदार्थ में अनेकरूपोंकी उपलब्धि असंभव है और वह संवृत्तिसे होती है । किन्तु ऐसा मानना तब उचित हो सकता है, जब एकरूप पदार्थकी उपलब्धि होती हो । यह कहना भी ठीक नहीं है कि अनेक स्वभावोंकी उपलब्धि अनादिकालीन अविद्याके उदयसे होती है। क्योंकि निर्बाधि और अनुभव सिद्ध विषयकी उपलब्धिको अविद्याके द्वारा माननेसे संसारमें किसी तत्त्वकी व्यवस्था ही नहीं हो सकेगी । यदि पदार्थमें अनेकत्वकी प्रतोति संवृतिके
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