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कारिका-४३]
तत्त्वदीपिका उपादान का नियम है । क्योंकि मिट्टीके द्वारा उसीके सदृश घटकी उत्पत्ति होती है । तन्तु और घटमें उपादानका नियम नहीं है, क्योंकि तन्तुसे घट विसदृश है। __ बौद्धोंके उक्त कथनमें कोई तथ्य नहीं है । मृत्पण्ड और घटमें अन्वयव्यतिरेकके अभावमें उसी प्रकारका वैलक्षण्य है जिस प्रकार कि तन्तु और घटमें है। मत्पिण्डका घटकी उत्पत्तिके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, क्यों कि मृत्पिण्डके सर्वथा नाश होनेपर घटकी उत्पत्ति होती है। अतः घट मृत्पिण्डसे सर्वथा विलक्षण है। मृत्पिण्ड और घटमें सर्वथा वैलक्षण्य होनेपर भी यदि उपादानउपादेयभाव है, तो तन्तु और घटमें भी उपादान-उपादेयभाव होना चाहिए। अन्वयरहित पदार्थों में ऐसा स्वभाव मानना भी ठीक नहीं है, जिस स्वभावके कारण मत्पिण्ड घटका ही कारण होता है, पटका नहीं। क्योंकि अन्वयके अभावमें जिस प्रकार भिन्न सन्तानमें सर्वथा भेद है, उसी प्रकार अभित्र सन्नानमें भी भेद है। इसलिए कारणका ऐसा स्वभाव मानना आवश्यक है जिससे कारण वह पूर्व स्वभावको छोड़कर उत्तर स्वभावको ग्रहण करता हआ द्रव्यरूपसे स्थिर रहता है। पूर्व स्वभावका सर्वथा नाश होनेपर और किसी पदार्थके द्रव्यरूपसे स्थित न रहनेपर भी कार्यकी उत्पत्ति मानने पर न तो उपादानका नियम सिद्ध हो सकता है, और न कार्यकी उत्पत्तिमें विश्वास ही हो सकता है। यदि कार्य सर्वथा असत् है, तो तन्तुओंसे पटकी ही उत्पत्ति होती है, घटकी नहीं, यह नियम कैसे बन सकता है। वास्तवमें तन्तुओंकी अपेक्षासे पटरूप कार्य सत् है, और घटकी अपेक्षासे असत् है । तन्तुओंमें पटरूपसे परिणत होनेकी विशेषता पायी जाती है, तभी तन्तुओंसे पटकी उत्पत्ति होती है। आतान, वितान आदिरूपसे परिणत तन्तुओंसे पटकी उत्पत्ति मानने में कोई बाधा भी नहीं आती है। क्योंकि तन्तु और पटमें अन्वय-व्यतिरेक पाया जाता है । ___ इस प्रकार असत्कार्यवाद एवं निरन्वय-क्षणिकवादमें कार्यकी उत्पत्ति असंभव है। और उपादान कारणके अभावमें कार्यकी उत्पत्तिमें विश्वास भी नहीं किया जा सकता है । क्षणिकैकान्तमें अन्य दोषोंको बतलानेके लिए अचार्य कहते हैं
न हेतुफलभावादिरन्यभावादनन्वयात् ।
संतान्नान्तरवन्नैकः संतानस्तद्वतः पृथक् ॥४३॥ क्षणिकपक्षमें अन्वयके अभावमें कार्य-कारणभाव आदि नहीं बन सकते
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