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२१८ आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-३ बौद्ध नाशको अहेतुक मानते हैं। प्रत्येक पदार्थका विनाश स्वभावसे ही होता है, अन्य किसी कारणसे नहीं। यदि ऐसा है, तो सोहनके मारनेवाले मोहनको हिंसक कहना उचित नहीं है। क्योंकि सोहनका जो विनाश हुआ, वह स्वभावसे ही हुआ। इसी प्रकार मोक्षका भी कोई हेतु नहीं होगा। बौद्धोंके यहाँ चित्तसंततिके नाशका नाम मोक्ष है । और बौद्धोंने स्वयं मोक्षके हेतु आठ अंग माने हैं। हिंसा करनेवालेको हिंसक कहना, और मोक्षको अष्टांगहेतुक कहना, इस बातको सिद्ध करता है कि विनाश अहेतुक नहीं है।
इस कारिकाके अष्टशती-भाष्यमें अकलंकदेवने लिखा है
'तथा निर्वाणं सन्तानसमूलतलप्रहाणलक्षणं सम्यक्त्वसंज्ञासंज्ञीवाक्कायकर्मान्तायामाजीवस्मृतिसमाधिलक्षणाष्टाङ्गहेतुकम् ।'
अकलंक देब द्वारा कथित इन आठ अंगोंके स्थानमें उपलब्ध बौद्धग्रन्थोंमें आठ अंगोंके नाम इस प्रकार हैं:-१. सम्यग्दष्टि, २. सम्यक् संकल्प, ३. सम्यक् वचन, ४. सम्यक्कर्मान्त, ५. सम्यक् आजीव, ६. सम्यक् व्यायाम, ७. सम्यक् स्मृति, और ८. सम्यक् समाधि ।
अकलंक देव कथित आठ नामोंमेंसे छह नामोंकी संगति बौद्ध ग्रन्थोंमें उपलब्ध नामोंके साथ हो जाती है। किन्तु संज्ञा और संज्ञी ये दो नाम ऐसे हैं, जो बौद्धदशनकी दृष्टिसे नूतन मालूम पड़ते हैं। संभव है कि अकलंक देवने प्रथम दो नामोंका प्रयोग सम्यग्दृष्टि और सम्यकसंकल्पके अर्थ में किया हो । आचार्य विद्यानन्दने अष्टसहस्रीमें इन नामोंके विषयमें कोई स्पष्टीकरण नहीं किया है ।
विनाशके हेतुसे पदार्थका विनाश नहीं होता है, किन्तु विसदृश पदार्थकी उत्पत्ति होती है। इस मतका खण्डन करनेके लिए आचार्य कहते हैं
विरूपकार्यारंभाय यदि हेतुसमागमः ।
आश्रयिभ्यामनन्योसावविशेषादयुक्तवत् ॥५३।। यदि विशदृश पदार्थकी उत्पत्तिके लिए हेतुका समागम होता है, तो अपृथक पदार्थों की तरह नाश और उत्पादको अभिन्न होनेके कारण नाशका हेतु भी नाश और उत्पादसे अभिन्न होगा। १. देखो पृ० ३२-३४ ।
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