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कारिका-३६] तत्त्वदीपिका
१९५ णुओंका एक स्कन्ध बन जाता है । वह स्कन्ध स्थिर और स्थूल होता है, और उसका प्रतिभास भी उसीरूपसे होता है। बौद्ध ज्ञानको पदार्थाकार मानते हैं। प्रत्यक्षमें जो आकार प्रतिभासित होता है, वह परमाणुओंका नहीं, किन्तु स्थूल पदार्थका ही होता है। फिर भी परमाणुओंका प्रत्यक्ष माना जाय तो कोई भी वस्तु अप्रत्यक्ष न रहेगी। एक वस्तुमें अनेक स्वभाव होते हैं। उनमेंसे एकके प्रधान होने पर शेष स्वभाव गौण हो जाते हैं। घटकी विवक्षा होने पर परमाणु और रूपादिक गौण हो जाते हैं। और रूपादिककी विवक्षा होने पर घट गौण हो जाता है। अतः एक ही वस्तुमें विवक्षा और अविवक्षाके द्वारा भेद और अभेदकी सत्ता मानने में कोई विरोध नहीं है।
इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्वको लेकर दो भङ्गोंको विस्तार पूर्वक बतला दिया है। शेष पाँच भङ्गोंकी प्रक्रियाको अस्तित्व-नास्तित्वको तरह समझ लेना चाहिये।
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