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कारिका-३७]
तत्त्वदीपिका सांख्यका कहना है कि पुरुषकी अर्थक्रिया चैतन्यरूप है, कार्यकी उत्पत्ति या ज्ञप्ति उसकी अर्थक्रिया नहीं है । उत्पत्ति या ज्ञप्ति क्रिया तो प्रधानका कार्य है। चैतन्य पुरुषसे भिन्न नहीं है, किन्तु वह तो उसका स्वरूप है। कहा भी है-'चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम्', पुरुषका स्वरूप चैतन्य मात्र है। वह चैतन्य नित्य पुरुषका स्वभाव होनेसे नित्य है । 'पुरुषस्य चैतन्यमस्ति', इस प्रकार अस्तिरूप क्रिया भी पुरुषमें पायी जाती है । वस्तुका लक्षण अर्थक्रिया करना नहीं है, केवल अस्तित्व ही उसका लक्षण है । यदि पुरुषका लक्षण अथंक्रिया करना हो तो उदासीनरूपसे बैठे हुए एक पुरुष में वस्तुत्वका अभाव मानना पड़ेगा। और एक अर्थक्रियामें दूसरी अर्थक्रिया न होनेके कारण अर्थक्रिया भी अवस्तु हो जायगी। अतः पुरुषमें चैतन्यरूप अर्थक्रियाका सद्भाव होनेसे वह वस्तु ही है।
सांख्यका उक्त मत ठीक नहीं है। यदि चैतन्य सर्वथा नित्य है, तो वह अर्थक्रियारूप कैसे हो सकता है। प्रत्यक्षादि किसी प्रमाणसे नित्य अर्थक्रियाका कभी ज्ञान नहीं होता है । नित्य पुरुष के नित्य चैतन्यको अर्थक्रिया कहना केवल वचनमात्र है । पूर्व आकारका त्याग और उत्तर आकारकी प्राप्तिका नाम अर्थक्रिया है। यदि कूटस्थ नित्य पदार्थमें पूर्व आकारके त्याग और उत्तर आकारकी प्राप्तिरूप अर्थक्रिया पायी जाती है, तो वह सर्वथा नित्य नहीं रह सकता है। नित्य पदार्थमें न तो कारकका ही व्यापार होता है, और न ज्ञापकका ही । तब उसमें अर्थक्रिया कैसे संभव है। पुरुषकी चैतन्यरूप अर्थक्रिया न तो उत्पत्तिरूप है, और न ज्ञप्तिरूप, जिससे कि उसमें कारक अथवा ज्ञापक का व्यापार संभव होता । कारक और ज्ञापकके व्यापारके अभावमें अर्थक्रिया भी संभव नहीं है। चैतन्यको अर्थक्रिया न मानकर पुरुषका स्वभाव माननेसे भी पुरुषमें नित्यत्व सिद्ध नहीं होता है, किन्तु परिणामित्व ही प्राप्त होता है, क्योंकि परिणाम, विवर्त, धर्म, अवस्था और विकार ये सब स्वभावके पर्यायवाची हैं। यदि किसी पदार्थका स्वभाव किसी प्रमाणसे नहीं जाता है, तो उसका सद्भाव ही सिद्ध नहीं हो सकता है । और यदि किसी प्रमाणसे वह जाना जाता है, तो अज्ञातरूप पूर्व आकारका त्याग और ज्ञातरूप उत्तर आकारकी उत्पत्ति होनेसे उसमें परिणमन स्वतः सिद्ध है। अतः चैतन्यरूप स्वभावमें भी परिणमन मानना ही होगा। सांख्यका यह कहना भी ठीक नहीं है कि पदार्थकी उत्पत्ति और नाश नहीं होता है, केवल आविर्भाव और तिरोभाव होता है। क्योंकि एक
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