________________
कारिका-२६] तत्त्वदीपिका
१७९ __ ब्रह्माद्वैतवादियोंका कहना है कि ब्रह्मका सद्भाव स्वबुद्धिकल्पित नहीं है, किन्तु प्रमाणसिद्ध है। अनुमान और आगम प्रमाणसे ब्रह्मकी सिद्धि होती है । 'सब पदार्थ ब्रह्मके अन्तर्गत हैं, प्रतिभासमान होनेसे' । इस अनुमानका तात्पर्य यह है कि सब पदार्थ स्वतः प्रकाशित होते हैं, इसलिए वे स्वतः प्रकाशमान ब्रह्मके अन्तर्गत ही हैं । इस प्रकार स्वतः प्रकाशमानत्व हेतुके द्वारा ब्रह्मकी सिद्धि की जाती है। आगम प्रमाणसे भी ब्रह्मकी सिद्धि होती है । वेदमें 'सर्वमात्मैव' 'सर्वं वै खल्विदं ब्रह्म' इत्यादि वाक्य आते हैं । इन वाक्योंकी व्याख्या उपनिषदोंमें निम्न प्रकार की गयी है।
ब्रह्मेति ब्रह्मशब्देन कृत्स्नं वत्स्वभिधीयते । प्रकृतस्यात्मकात्य॑स्य वै शब्दः स्मृतये मतः॥ सर्व वै खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन ।
आरामं तस्य पश्यन्ति न तं पश्यन्ति कश्चन ॥ 'सर्वमात्मैव' इस वाक्यमें आत्मा या ब्रह्म शब्द द्वारा संसारकी समस्त वस्तुओंका कथन होता है । 'सर्वं वै खल्विदं ब्रह्म' इस वाक्य में 'वै' शब्द इस बातको बतलाता है कि सारे संसारमें या पदार्थों में ब्रह्मकी ही एकमात्र सत्ता है। इस जगत्में सब कुछ ब्रह्म ही है, अनेक कुछ भी नहीं है । लोग केवल ब्रह्मकी पर्यायोंको ही देखते हैं, ब्रह्मको कोई नहीं देखता ।
इस प्रकार ब्रह्माद्वैतवादी अनुमान और आगम इन दो प्रमाणोंसे ब्रह्मकी सिद्धि करते हैं। उक्त मतका खण्डन करनेके लिए आचार्य कहते हैं
हेतोरद्व तसिद्धिश्चेद् द्वतं स्याद्धेतुसाध्ययोः ।
हेतुना चेद्विना सिद्विद्वैतं वाङ्मावतो न किम् ॥२६॥ हेतुके द्वारा अद्वैतकी सिद्धि करने पर हेतु और साध्यके सद्भावमें द्वतकी सिद्धिका प्रसंग आता है । और यदि हेतुके विना अद्वतकी सिद्धिकी जाती है, तो वचनमात्रसे द्वैतकी सिद्धि भी क्यों नहीं होगी।
पहले ब्रह्माद्वैतवादियोंने हेतुके द्वारा ब्रह्मकी सिद्धि की है। उनका कहना है कि हेतुके द्वारा ब्रह्मकी सिद्धि करनेपर भी द्वैतकी सिद्धि नहीं होगी, क्योंकि हेतु और साध्यमें तादत्म्य सम्बन्ध है। वे पृथक्-पृथक् नहीं हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org