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कारिका-३१]
तत्त्वदीपिका शब्द सामान्यका प्रतिपादन करते हैं। शब्द जिस सामान्यका प्रतिपादन करते हैं, वह सामान्य भी पारमार्थिक नहीं है, किन्तु कल्पित है। अन्य व्यावृत्तिका नाम सामान्य है। मनुष्योंमें कोई मनुष्यत्व सामान्य नहीं रहता है, किन्तु सब मनुष्य अमनुष्योंसे व्यावृत्त हैं, इसलिए उनमें एक मनुष्यत्व सामान्यकी कल्पना करली जाती है। यही बात गोत्व आदि प्रत्येक सामान्यके विषयमें है । शब्दका कोई अर्थ वाच्य तब होता है जब उसमें संकेत ग्रहण कर लिया जाता है। 'इस शब्दमें इस अर्थको प्रतिपादन करनेकी शक्ति है' इस प्रकार शब्द और अर्थमें वाच्य-वाचक सम्बन्धके ग्रहण करनेका नाम संकेत है। विशेष अनन्त हैं। उन अनन्त विशेषोंमें संकेत संभव नहीं है। इसलिए विशेष शब्दके वाच्य नहीं है। क्योंकि संकेत कालमें देखा गया विशेष क्षणिक होनेके कारण अर्थ प्रतिपत्तिके कालमें नहीं रहता है। प्रत्यक्षके द्वारा स्वलक्षणका जैसा स्पष्ट ज्ञान होता है, वैसा ज्ञान शब्दके द्वारा नहीं होता है, शब्दज्ञानमें स्वलक्षणकी सन्निधिकी अपेक्षा भी नहीं रहती है। प्रत्युत स्वलक्षणके अभावमें भी शब्दज्ञान उत्पन्न हो जाता है। अतः स्वलक्षण शब्दका वाच्य नहीं हो सकता है। केवल सामान्य ही शब्दका वाच्य होता है ।
बौद्धोंका उक्त कथन युक्तिसंगत नहीं है । यदि स्वलक्षण शब्दका वाच्य नहीं है, और अवस्तुभूत सामान्य शब्दका वाच्य है, तो इसका अर्थ यह हआ कि शब्दका वाच्य वस्तु न होकर अवस्तु है। फिर शब्दका उच्चारण करने की और संकेत ग्रहण करने की भी कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। जैसे अश्व शब्दके द्वारा गौका कथन नहीं होता है. वैसे गो शब्दके द्वारा भी गौका कथन असंभव है। यदि शब्द वस्तुका प्रतिपादन नहीं करते हैं, तो मौनालम्बन ही श्रेयस्कर है। ___ बौद्धोंका कहना है कि शब्दकी प्रवृत्तिका नियामक परमार्थभूत वस्तु नहीं है, किन्तु वासनाविशेष है। जैसे ईश्वर, प्रधान आदिके वास्तविक न होने पर भी अपनी-अपनी वासनाके अनुसार भिन्न-भिन्न मतावलम्बी भिन्न-भिन्न अर्थोंमें ईश्वर, प्रधान आदि शब्दोंका प्रयोग करते हैं। ___ यदि शब्दकी प्रवृत्तिका नियामक वासनाविशेष है, तो प्रत्यक्षकी प्रवृत्तिका भी नियामक वासनाविशेष क्यों न होगा। हम कह सकते हैं कि प्रत्यक्ष वासनाविशेषके कारण ही अर्थका प्रकाशक होता है, न कि अर्थका सद्भाव होनेसे । यदि प्रत्यक्ष अर्थके सद्भावके कारण अर्थका प्रकाशक होता, तो एक चन्द्रमें दो चन्द्रकी भ्रान्ति क्यों होती। ऐसा
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