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आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१ सकता है, और नास्तित्वके विना अस्तित्व नहीं हो सकता है। इन दोनों धर्मोंका अधिकरण एक ही वस्तु होती है। एक वस्तुमें अस्तित्व हो और दूसरी वस्तुमें नास्तित्व हो, ऐसा मानना प्रतीति विरुद्ध है। अस्तित्व और नास्तित्व ये एक ही वस्तुके विशेषण हैं। अस्तित्व जिस वस्तुका विशेषण होता है, नास्तित्व भी उसी वस्तुका विशेषण होता है ।
हेतुका साध्यके साथ अन्वय और व्यतिरेक पाया जाता है। अन्वयको साधर्म्य तथा व्यतिरेकको वैधर्म्य कहते हैं । हेतुके होने पर साध्यका होना अन्वय है और साध्यके अभावमें हेतुका नहीं होना व्यतिरेक है । 'पर्वतमें वह्नि है, धूम होनेसे' । यहाँ धूम हेतु है, और वह्नि साध्य है । जहाँ जहाँ धूम होता है, वहाँ वहाँ वह्नि होती है, और जहाँ वह्नि नहीं होती है, वहां धूम नहीं होता है। इस प्रकार धूम और वह्निमें साधर्म्य
और वैधर्म्य दिखलाया जाता है। साधर्म्य और वैधर्म्य दोनों हेतुके विशेषण हैं, तथा परस्परमें एक दूसरेके सापेक्ष हैं । साधर्म्य वैधर्म्यकी अपेक्षा रखता है और वैधर्म्य साधर्म्य की । जिस हेतुमें साधम्र्य होगा उसमें वैधर्म्य भी अवश्य होगा, और जिसमें वैधर्म्य होगा उसमें साधर्म्य भी अवश्य होगा।
यहाँ यह शंकाकी जा सकती है कि कुछ हेतु केवलान्वयी होते हैं, और कुछ हेतु केवलव्यतिरेकी । जो हेतु केवलान्वयी हैं, उनमें केवल अन्वय ही पाया जाता है, व्यतिरेक नहीं। और जो हेतु केवलव्यतिरेकी हैं, उनमें केवल व्यतिरेक ही पाया जाता है, अन्वय नहीं। अतः यह कैसे माना जा सकता है कि अन्वय और व्यतिरेक परस्पर सापेक्ष हैं।
उक्त शंका कथंचित् ठीक हो सकती है। यह ठीक है कि कुछ हेतुओंको केवलान्वयी तथा कुछ हेतुओंको केवलव्यतिरेकी कहा जाता है। किन्तु सूक्ष्मरीतिसे विचार करने पर यह सिद्ध होता है कि जिन हेतुओंको केवलान्वयी कहा जाता है, वे हेतु भी कथंचित् व्यतिरेकी हैं, और जिन हेतुओंको केवलव्यतिरेकी कहा जाता है, वे भी कथंचित् अन्वयी हैं । यथा-'सर्वमनित्य प्रमेयत्वात्, सब पदार्थ अनित्य हैं, प्रमेय होनेसे ।' इस अनुमानमें प्रमेयत्व हेतुको केवलान्वयी कहा गया है। जो प्रमेय (ज्ञानका विषय) होता है, वह अनित्य होता है, जैसे घट। इस प्रकार प्रमेयत्व हेतुका अन्वय तो मिल जाता है, किन्तु जो अनित्य नहीं होता है, वह प्रमेय नहीं होता है, ऐसा व्यतिरेक न मिलनेसे यह हेतु केवलान्वयी है । परन्तु प्रमेयत्व हेतु व्यतिरेकी भी है । प्रमेयत्व वस्तुका धर्म है, वह अवस्तुमें नहीं पाया जाता है । जो अनित्य नहीं होता
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