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कारिका-१९] तत्त्वदीपिका
१६७ वस्तुके विषयमें अनुभव तथा युक्तिसिद्ध यही पारमार्थिक व्यवस्था है। __कुछ लोग कहते हैं कि अस्तित्व और नास्तित्व जीवादि वस्तुओंसे सर्वथा भिन्न हैं, और वस्तु अस्तित्व-नास्तित्वरूप नहीं है। अन्य लोग कहते हैं कि अस्तित्व और नास्तित्व विशेषण हो हैं, विशेष्य नहीं । दूसरे लोग कहते हैं कि अस्तित्व और नास्तित्व अभिलाप्य नहीं हैं । इन लोगोंको उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं
विधेयप्रतिषेध्यात्मा विशेष्यः शब्दगोचरः।
साध्यधर्मो यथा हेतुरहेतुश्चाप्यपेक्षया ।।१९।। शब्दका विषय होनेसे विशेष्य विधेय और प्रतिषेध्यात्मक होता है । जैसे साध्यका धर्म अपेक्षाभेदसे हेतु भी होता है और अहेतु भी । ___ अस्तित्व विधेय है और नास्तित्व प्रतिषेध्य है। अस्तित्व और नास्तित्व जीवादि वस्तुओंकी आत्मा ( स्वरूप ) हैं। अस्तित्व और नास्तित्वको जीवादि वस्तुओंके विशेषण होनेसे जीवादि वस्तुएँ विशेष्य कहलाती हैं। विशेष्य होनेसे जीवादि पदार्थ अस्तित्व और नास्तित्वरूप हैं । अतः विशेष्य होने जीवादि वस्तुओंमें अस्तित्व और नास्तित्व विशेषणोंकी सिद्धि की जाती है, और जीवादि वस्तुओंको शब्द गोचर होनेसे उनमें विशेष्यत्वकी सिद्धि होती है। जो लोग वस्तुको शब्दगोचर नहीं मानते हैं, उनके लिए विशेष्यत्व हेतुसे शब्दगोचरत्वकी सिद्धि की गयी है ।
तात्पर्य यह है कि जो वस्तुको शब्दका विषय नहीं मानते हैं, उनके प्रति वस्तुमें शब्दगोचरत्व सिद्ध करनेके लिए विशेष्यत्व हेतुका प्रयोग किया जाता है। और जो वस्तुको विशेष्य नहीं मानते हैं उनके प्रति वस्तुमें विशेष्यत्व सिद्ध करनेके लिए शब्दगोचरत्व हेतुका प्रयोग किया जाता है । जो वस्तुमें न तो शब्दगोचरत्व मानते हैं और न विशेष्यत्व मानते हैं, उनके लिए वस्तुत्व हेतुके द्वारा दोनों धर्मोकी सिद्धिकी जाती है। अपेक्षाभेदसे एक ही वस्तुमें भिन्न भिन्न धर्मोको माननेमें कोई विरोध नहीं आता है । जैसे साध्यका धर्म धूम साध्यका साधक होनेसे कहीं हेतु होता है और साध्यका साधक न होनेसे कहीं हेतु नहीं भी होता है। यदि साध्य वह्नि है तो वहाँ धूम हेतु होता है, और यदि साध्य जल है तो वहाँ धूम अहेतु है । इस प्रकार धूममें हेतुत्व और अहेतुत्व धर्मोकी तरह जीवादि वस्तुओंमें अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्म रहते हैं।
बौद्ध मानते हैं कि निर्विकल्पक प्रत्यक्षके द्वारा निरंश स्वलक्षणकी
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