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कारिका-९] तत्त्वदीपिका
१०७ इसका नियामक कुछ भी नहीं रहेगा। ऐसी स्थितिमें चेतन और अचेतनके स्वरूपका भी अभाव हो जायगा। अत: सब पदार्थोमें अपने अपने स्वरूपके नियामक अन्यन्ताभावका सद्भाव मानना आवश्यक है। ____सांख्यके अनुसार प्रकृति, पुरुष आदि पच्चीस तत्त्वोंका सद्भाव ही है, अभाव नहीं। प्रधान और अव्यक्त ये प्रकृतिके पर्यायवाची शब्द हैं। अव्यक्तसे जिन बद्धि आदि २३ तत्त्वोंकी उत्पत्ति होती है उनको व्यक्त कहते हैं। यदि व्यवत और अव्यक्तमें अन्योन्याभाव नहीं है तो व्यक्त अव्यक्तरूप हो जायगा और अव्यक्त व्यक्तरूप । और यदि व्यक्त तथा अव्यक्त दोनों एक रूप हैं तो दोनोंका पृथक् पृथक् लक्षण बतलाना व्यर्थ है । दोनोंका लक्षण इस प्रकार है
हेतुमदनित्यमव्यापि सक्रियमनेकमाश्रितं लिङ्गम् । सावयवं परतन्त्र व्यक्तं विपरीतमव्यक्तम् ।
सांख्यका० १० व्यक्त (बुद्धि आदि) कारण सहित होता है, अनित्य होता है, अव्यापक होता है, क्रिया सहित होता है, अनेक होता है, अपने कारणके आश्रित होता है, प्रलयकालमें प्रधानमें लयको प्राप्त हो जाता है, अवयव सहित है, और प्रधानके अधीन होनेसे परतन्त्र है। यह व्यक्तका लक्षण है। अव्यक्तका लक्षण व्यक्तसे विपरीत है। अर्थात् अव्यक्त कारण रहित है, नित्य है, व्यापक है, निष्क्रिय है, एक है, अनाश्रित है, किसीमें लयको प्राप्त नहीं होता है, निरवयव है और स्वतंत्र है । अतः अन्योन्याभावके अभावमें व्यक्त और अव्यक्त एक हो जायगे और एक होने पर उनमें लक्षणभेद नहीं बनेगा।
प्रागभावके न मानने पर महत्, अहंकार आदि तत्त्व अनादि हो जाँयगे, फिर उनकी प्रकृतिसे उत्पत्ति बतलाना व्यर्थ है। उनकी उत्पत्तिका क्रम इस प्रकार बतलाया गया है
प्रकृतेर्महांस्ततोऽहंकारस्तस्माद्गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि ।
-सांख्यका० २२ प्रकृतिसे बुद्धि तत्त्व उत्पन्न होता है, और बुद्धिसे अहंकारकी उत्पत्ति होती है । अहंकारसे सोलह ( पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, मन और पाँच तन्मात्रा) तत्त्वोंकी उत्पत्ति होती है । और अन्तमें पाँच तन्मात्राओंसे पाँच भूतोंकी उत्पत्ति होती है।
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