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कारिका - १४ ]
तत्त्वदीपिका
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दो वर्गों में होता है - एक सद्वर्ग और दूसरा असद्वर्ग । समस्त पदार्थ इन दो वर्गों में ही अन्तर्हित हो जाते हैं । इसलिये वैशेषिकों के अनुसार केवल विधिवाक्य और निषेधवाक्य ये दोनों वाक्य ही सत्य हैं, अन्य वाक्य ठीक नहीं है । वैशेषिकोंका उक्त कथन असम्यक् है । पदार्थ सत् और असत् उभयरूप हैं । जिस समय सत्का प्रधानरूपसे कथन किया जाता है, उस समय पदार्थ सत्रूप सिद्ध होता है, और जिस समय पदार्थका असत्रूपसे कथन किया जाता है, उस समय पदार्थ असत् रूप सिद्ध होता है । इसी प्रकार जिस समय पदार्थके दोनों धर्मोका क्रमशः प्रधानरूपसे कथन किया जाता है, उस समय पदार्थ उभयात्मक सिद्ध होता है । केवल सत्त्ववचनके द्वारा या असत्त्ववचनके द्वारा प्रधानभावापन्न दोनों धर्मोका कथन नहीं हो सकता है । अतः एक धर्मकी प्रधानतासे वर्णित वस्तुकी अपेक्षासे क्रमशः दोनों धर्मोकी प्रधानतासे वर्णित वस्तु कुछ विलक्षण ही होती है । यही कारण है कि केवल विधिवाक्य या प्रतिषेधवाक्यके द्वारा क्रमशः प्रधानभावापन्न दोनों धर्मोंका कथन नहीं हो सकता है । अतः उभयधर्मात्मक वस्तुको विषय करनेवाला तृतीय भंग मानना अत्यन्त आवश्यक है । जिस समय दोनों धर्मोंका एक साथ कथन करनेकी अपेक्षा हो, उस समय वस्तुका स्वरूप पहिलेकी अपेक्षा नितान्त विलक्षण होता है। उस समय वस्तु अवर्णनीय होती है, और ऐसी वस्तुको विषय करनेवाला अवक्तव्य नामक चतुर्थ भंग भी मानना आवश्यक है । जहाँ सत्, असत् और उभयधर्मों के साथ अवक्तव्यत्त्वके वर्णन करने की भी अपेक्षा होती है, वहाँ तीन भंग और भी होते हैं । इस प्रकार अस्तित्त्व धर्मको लेकर वस्तुमें सात भंग होते हैं - १. स्यादस्ति वस्तु, २ स्यान्यास्ति वस्तु, ३. स्यादस्ति च नास्ति च वस्तु, ४. स्यादवक्तव्यं वस्तु, ५. स्यादस्ति चावक्तव्यं च वस्तु, ६. स्यान्नास्ति चावक्तव्यं च वस्तु, ७ स्यादस्ति च नास्ति चावक्तव्यं च वस्तु । यहाँ प्रत्येक वाक्यके साथ स्यात् शब्द लगा हुआ है । यह स्यात् ' शब्द क्या है ? स्यात् शब्द निपात शब्द है । वह इस बात को बतलाता है कि वस्तु सर्वथा सत् नहीं है, किन्तु अनेकधर्मात्मक है । कथंचित् शब्द स्यात् शब्दका ही पर्यायवाची है । इसीलिए कारिकामें कथंचित् शब्दका प्रयोग किया गया है । प्रत्यक्षादिविरुद्ध धर्मोकी कल्पना करना सप्तभंगी नहीं है, किन्तु अविरोधी धर्मोकी कल्पना
कथंचिदित्यपरनामकः
स्याच्छब्दो
१. सर्वथास्तित्वनिषेधको नेकान्तद्योतकः
निपातः । १०
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