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कारिका-१३ ] तत्त्वदीपिका
बौद्धाचार्य प्रज्ञाकर कहते हैं कि निर्विकल्पक प्रत्यक्षसे भी अभ्यास, प्रकरण, बुद्धिपाटव, अथित्व आदिके कारण दृष्टसजातीय पदार्थमें स्मृति हो जाती है। जिस पदार्थका अभ्यास होता है या जिस पदार्थका प्रकरण चल रहा हो, उसके समान पदार्थकी स्मृति होना असंगत नहीं है । बुद्धिकी पटुताके कारण तथा अर्थकी प्राप्तिकी इच्छाके कारण भी दृष्टसजातीय पदार्थकी स्मति होना सम्भव है। जो लोग प्रत्यक्षको व्यवसायात्मक मानते हैं उनके यहाँ भी अभ्यास आदिके अभावमें दृष्टसजातीय पदार्थकी स्मृति नहीं होती है। जैसे कि प्रतिवादीके द्वारा कथित वर्ण, पद आदिकी स्मृति नहीं होती है, अथवा अपने श्वासोच्छ्वासकी स्मृति नहीं होती है ।
उक्त कथन भी असंगत है। बौद्धोंके अनुसार प्रत्यक्षका स्वभाव एक तथा निरंश है । ऐसे प्रत्यक्षमें नीलादि विषयक अभ्यास आदि हो और क्षणक्षयादि विषयक अभ्यास आदि न हो, ऐसा नहीं हो सकता है । यदि प्रत्यक्षका स्वभाव अभ्यास आदि रूप नहीं है और अनभ्यास आदिकी व्यावृत्तिसे प्रत्यक्ष अभ्यास आदि रूप हो जाता है, तो पावकमें भी अशीतत्व की व्यावृत्ति मानना चाहिए, क्योंकि पावकका स्वभाव शीत नहीं है । अतः उसमें शीतसे अन्य अशीतत्व की व्यावृत्ति संभव है। और प्रत्यक्षका स्वभाव अभ्यास आदि रूप है तो अन्य व्यावृत्ति भो माननेकी कोई आवश्यकता नहीं है। सविकल्पक प्रत्यक्षज्ञानवादी जैनोंके मतमें अनभ्यासात्मक अवग्रह, ईहा और अवाय से भिन्न अभ्यासात्मक धारणा ज्ञानका सद्भाव पाया जाता है। अतः धारणा ज्ञानके अभावमें प्रतिवादी द्वारा कथित वर्ण, पद आदिकी स्मृति नहीं होती है। और जहाँ धारणा ज्ञान रहता है वहाँ स्मृति होती ही है।
बौद्धोंके अनुसार प्रत्यक्ष शब्दसंसर्गसे रहित है। शब्दका सम्बन्ध न तो प्रत्यक्षके साथ है और न स्वलक्षणके साथ । शब्दका विषय केवल सामान्य है। वास्तवमें यदि प्रत्यक्ष शब्दसंसर्ग रहित है, तो उसके द्वारा सामान्य और शब्दका संयोजन ( सम्बन्ध ) कैसे हो सकता है । जब स्वयं प्रत्यक्षमें शब्दका संसर्ग नहीं है तो वह सामान्य और शब्दका संसर्ग किसी भी प्रकार नहीं करा सकता है। पहले बतलाया जा चुका है कि स्वलक्षण और सामान्य पृथक् पृथक् नहीं है। अतः साधारणरूपसे प्रतिभासित होनेवाला विशेष ही सामान्य है, और उसीके साथ शब्दका सम्बन्ध होता है । ऐसा मानना ठीक नहीं है कि प्रत्यक्ष और स्मतिके द्वारा पदार्थका भिन्न भिन्न प्रकारसे ग्रहण होनेके कारण विषय एक नहीं है । क्योंकि विषयके एक होने पर भी भिन्न भिन्न प्रतिभास होता है। अथवा
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