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कारिका-६ ]
तत्त्वदीपिका
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माना जा सकता। ज्ञानादिकी उत्पत्ति या नाश पर्यायकी अपेक्षासे ही होता है, सर्वथा नहीं । ज्ञान आत्माका स्वभाव है । अतः आत्मा ज्ञानसे शून्य त्रिकालमें भी नहीं हो सकती । जिस प्रकार अग्नि कभी भी उष्णताको नहीं छोड़ सकती, उसीप्रकार आत्मा भी ज्ञानशून्य नहीं हो सकती । ज्ञान आदि आत्मा सर्वथा भिन्न मानना भी ठीक नहीं है । क्योंकि गुण और गुणीमें तादात्म्य रहता है । मुक्तिमें इन्द्रिय जन्य एवं कर्मके क्षयोपशमसे होने वाले ज्ञान, सुख आदिकी ही निवृत्ति होती है, न कि कर्मोंके क्षयसे होने वाले अतीन्द्रिय ज्ञान सुखादिकी । अतः मुक्ति में ज्ञान आदि गुणों का नाश नहीं होता है, प्रत्युत अनन्त ज्ञान आदिकी प्राप्तिका नाम ही यथार्थमें मोक्ष है ।
वेदान्तवादी कहते हैं— 'आनन्दं ब्रह्मणो रूपं तच्च मोक्षेऽभिव्यज्यते' आत्माका स्वरूप आनन्द है और मोक्षमें उस आनन्दकी अभिव्यक्ति होती है । अर्थात् इस मतमें अनन्त सुखको प्राप्त करना ही मोक्ष है । जहाँ तक अनन्त सुखको प्राप्त करनेका प्रश्न है वहाँ तक तो ठीक है, किन्तु आत्माका स्वरूप केवल आनन्द है और उसको प्राप्त करना ही मोक्ष है, यह बात ठीक नहीं है । आत्माका स्वरूप केवल आनन्द ही नहीं है, किन्तु ज्ञान-दर्शन भी है । मोक्षमें अनन्त सुखकी प्राप्ति के साथ ही अनन्त ज्ञान आदिकी भी प्राप्ति होती है । यदि मोक्षमें केवल आनन्दकी ही प्राप्ति होती है, तो प्रश्न होता है कि उस आनन्दका संवेदन (ज्ञान) होता है । या नहीं। यदि संवेदन नहीं होता है तो 'मुक्तिमें अनन्तसुख है' ऐसा कहना ही असंभव है । और यदि सुखका संवेदन होता है तो अनन्त सुखको संवेदन करने वाले अनन्त ज्ञानकी भी सिद्धि अनिवार्य है । इसप्रकार मोक्षमें केवल सुखको मानने वाला वेदान्त मत भी समीचीन नहीं है ।
बौद्ध में दीपक बुझ जाने के समान चित्त सन्ततिके निरोधका नाम मोक्ष बतलाया गया है । जब दीपक बुझ जाता है तो वह न तो पृथिवीमें जाता है, न आकाशमें जाता है, न किसी दिशामें जाता है, और न किसी विदिशा में ही जाता है । किन्तु तेलके समाप्त हो जाने से केवल शान्त हो जाता है अर्थात् बुझ जाता है । उसीप्रकार मोक्षको प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी न तो पृथिवीमें जाता है, न आकाशमें जाता है, न किसी दिशामें जाता है, और न किसी विदिशामें ही जाता है । किन्तु क्लेशोंका क्षय हो जानेसे केवल शान्तिको प्राप्त कर लेता है । इसप्रकार बौद्धमतमें निर्वाणको दीपक बुझने के समान बतलाया गया है । जैसे दीपकके बुझने पर कुछ शेष नहीं रहता है, उसीप्रकार निर्वाणके प्राप्त होने पर भी
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