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कारिका-६]
तत्त्वदीपिका होती है। अतः यह मानना होगा कि बालककी आत्मा पहिले भवसे आयी है। शस्त्रोंमें ऐसी बहुतसी कथायें मिलती हैं जिनसे ज्ञात होता है कि अनेक व्यक्तियोंने अपने पूर्व जन्मकी बातें बतलायी थीं कि वे कहाँ थे, क्या थे, इत्यादि । वर्तमानमें भी कभी-कभी यह सुनने में आता है कि अमुक स्थानमें अमुक व्यक्तिने अपने पूर्व जन्मकी अनेक बातोंको बतलाया
और जाँच करनेपर वे सत्य निकलीं। यह भी सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति मरकर भत या राक्षस हआ है और अपने कूटम्बके लोगोंको कष्ट दे रहा है। इन सब बातोंसे सिद्ध होता है कि जीव मरकर एक भवसे दूसरे भवमें जाता है । इसप्रकार आत्माकी नित्यता निर्विवाद सिद्ध है।
अर्हन्तने जिन मोक्ष आदि तत्त्वोंका उपदेश दिया है उनमें किसी प्रमाणसे विरोध न आनेके कारण अर्हन्तके वचन यक्ति और आगमसे अविरोधी सिद्ध होते हैं। और अविरोधी वचन अर्हन्तकी निर्दोषताको घोषित करते हैं। इसलिये स्वभाव, देश और कालसे विप्रकृष्ट परमाणु आदि पदार्थोंको जानने वाले सर्वज्ञ अर्हन्त ही हैं। अर्हन्तके अतिरिक्त अन्य कोई सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि अन्य सब सदोष हैं। सदोष होनेका कारण यह है कि उनके (कपिलादिके) वचन युक्ति और आगमसे विरुद्ध हैं। उन्होंने जिन तत्त्वोंका उपदेश दिया है वह प्रमाणसे बाधित है।
कपिल (सांख्योंके इष्टदेव)ने मोक्षका स्वरूप इस प्रकार बतलाया है-'स्वरूपे चैतन्यमात्रेऽवस्थानमात्मनो मोक्षः'-चैतन्यमात्र आत्माका स्वरूप है, और उसमें स्थित होना ही आत्माका मोक्ष है। सांख्यदर्शनके वर्णनमें यह बतलाया जा चुका है कि प्रकृति और पूरुषमें भेदविज्ञान न होनेसे बन्ध होता है। और प्रकृति तथा पुरुषमें भेदविज्ञान हो जानेसे पुरुष अपने शुद्ध स्वरूप चैतन्यमात्रको प्राप्त कर लेता है। इसीका नाम मोक्ष है। ___ कपिलके द्वारा माना गया मोक्षका उक्त स्वरूप समीचीन नहीं है। सांख्यमतमें ज्ञान और चैतन्यमें भेद है । ज्ञान पुरुषका धर्म या गुण नहीं है, किन्तु प्रकृतिका कार्य है। अर्थात् ज्ञान अचेतन प्रकृतिका कार्य होनेसे प्रकृतिरूप ही है। पुरुषका स्वरूप तो केवल चैतन्यमात्र या चित्शक्तिमात्र है। यदि चैतन्यको अनन्त ज्ञानादिरूप माना जाय तो चैतन्यमात्रमें स्थित होनेका नाम मोक्ष कहना ठीक है, क्योंकि आत्माका स्वरूप ज्ञानादिरूप है। ज्ञानको आत्माका धर्म न मानकर अचेतन प्रकृतिका धर्म मानना सर्वथा असंगत है।
जो पदार्थोंको जानता है वह ज्ञान है। पदार्थोंको वही जान सकता
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