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आप्तमीमांसा
है कि आपके वचन युक्ति और आगमसे अविरोधी हैं ।
अब यहाँ यह विचार करना है कि अन्तने किन-किन तत्त्वोंका प्रतिपादन किया है और उनमें बाधा क्यों नहीं आती है । अर्हन्तने मुख्यरूपसे चार तत्त्वोंका उपदेश दिया है--मोक्ष, मोक्षके कारण, संसार और संसारके कारण । आत्मा के साथ ज्ञानावरणादि आठ कर्म अनादिसे लगे हुए हैं । संवर और निर्जराके द्वारा आठ कर्मोंके नष्ट हो जानेपर आत्माका अपने शुद्ध स्वरूपको प्राप्त कर लेना मोक्ष है । कर्मोंके कारण आत्माके स्वाभाविक गुण प्रगट नहीं हो पाते हैं । अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये आत्मा के विशेष गुण हैं। आठ कर्मोंका नाश हो जानेपर आत्मा उक्त गुणोंकी प्राप्ति के साथ ही सदाके लिए संसार के बन्धनसे छूट जाता है । इसीका नाम मोक्ष है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षके कारण हैं । 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।' इस सूत्र में एकवचनान्त मार्ग शब्द इसी बातको बतलाता है कि सम्यग्दर्शनादि तीनों मिलकर मोक्षके मार्ग हैं, पृथक्पृथक् नहीं ।
[ परिच्छेद- १
संसार क्या है ? ‘स्वोपात्तकर्मवशादात्मनो भवान्तरावाप्तिः संसारः । ' अपने-अपने कर्मके अनुसार जीव एक जन्मसे दूसरे जन्ममें और दूसरे जन्मसे तीसरे जन्ममें चक्कर लगाते रहते हैं, इसीका नाम संसार है । यथार्थमें ‘संसरणं संसार:' भ्रमण करनेका नाम संसार है । संसारी जीव कर्मरूपी यंत्र वशमें होकर सदा भ्रमण किया करते हैं । उन्हें एक क्षणके लिए भी निराकुल सुखकी प्राप्ति नहीं होती है । संसार में अनन्त दुःख हैं, जिनके कारण जीव सदा दुःखी रहते हैं । संसारमें जन्म, मरण, बुढ़ापा, क्षुधा, तृषा आदिके दुःखोंको सब अनुभव करते हैं । मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र अथवा मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये संसार के कारण हैं । मिथ्यादर्शनादिके द्वारा जीव सदा कर्मबन्ध किया करता है, और कर्मबन्धके कारण ही जीवको संसार के दुःख भोगना पड़ते हैं । इसलिये मिथ्यादर्शनादि संसारके कारण हैं । जब संसार है तो संसार के कारण मानना भी आवश्यक है, क्योंकि यदि संसारका कोई कारण न हो तो संसारको नित्य मानना पड़ेगा, क्योंकि ऐसा नियम है कि जिस वस्तुका कोई कारण नहीं होता है वह नित्य होती है । और यदि संसार नित्य है तो किसीको कभी भी मोक्षकी प्राप्ति संभव न होगी । यत्तः मिथ्यादर्शनादि संसारके कारण हैं अतः संसार अनित्य है । इस प्रकार अर्हतने मोक्ष आदि चार तत्त्वोंका उपदेश दिया है ।
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