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आप्तमीमांसा
[परिच्छेद-१ त्वात्', 'शब्द अनित्य है, क्योंकि वह तालु आदिसे उत्पन्न किया जाता है'। इस अनुमानमें भी उक्त दोष दिया जा सकता है। कृतकत्व हेतु यदि अनित्य शब्दका धर्म है, तो जैसे अनित्य शब्द असिद्ध है वैसे उसका धर्म हेतु भी असिद्ध है। यदि हेतू नित्य शब्दका धर्म है, तो अनित्यसे विरुद्ध नित्य शब्दको सिद्ध करने के कारण हेतु विरुद्ध है। यदि हेतु नित्य और अनित्य दोनों धर्मरूप है, तो पक्ष, सपक्ष और विपक्षमें रहनेके कारण अनैकान्तिक है। इसी प्रकार धुमसे वह्निको सिद्ध करने में भी उक्त दोष दिये जा सकते हैं। यहाँ बौद्ध यदि कहे कि कृतकत्व हेतु ऐसे धर्मीका धर्म है जिस धर्मीके अनित्य होनेमें विवाद है। अर्थात् शब्दके अनित्य होने में विवाद है, अतः अनित्यरूपसे विवादापन्न शब्दका कृतकत्व धर्म है। तो जैन भी यही कहेंगे कि अनुमेयत्व हेतु भी ऐसे धर्मीका धर्म है जिसके सर्वज्ञ होने में विवाद है। अतः जब अनुमेयत्व हेतु सर्वज्ञरूपसे विवादापन्न धर्मीका धर्म है, तब अनुमेयत्व हेतुमें असिद्ध आदि दोष देना असंगत है।
सूक्ष्म आदि पदार्थोंको जाननेवाला जो प्रत्यक्ष है वह इन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं है, किन्तु अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष है । पहिले तो सामान्यरूपसे इतना ही सिद्ध किया गया है कि सूक्ष्म आदि पदार्थ प्रत्यक्षसे जाने जाते हैं । किन्तु सूक्ष्मरूपसे विचार करने पर यह मानना पड़ता है कि उनको जाननेवाला प्रत्यक्ष इन्द्रिय जन्य नहीं है, किन्तु अतीन्द्रिय है। इन्द्रियप्रत्यक्षम इतनी शक्ति नहीं है कि वह सूक्ष्म आदि पदार्थोंका ज्ञान कर सके । अतः सक्ष्म आदि पदार्थोको जाननेवाले प्रत्यक्षको अतीन्द्रिय मानना अनिवार्य है।
शंका-सूक्ष्मादि पदार्थ किसको प्रत्यक्ष होते हैं ? अहंन्तको या अनर्हन्तको अथवा किसीको भी। यदि अर्हन्तको प्रत्यक्ष होते हैं तो 'सूक्ष्मादयः कस्यचित् प्रत्यक्षा अनुमेयत्वात्' इस अनुमानमें अर्हन्त शब्द न आनेसे अर्हन्तमें सूक्ष्मादि अर्थोंका प्रत्यक्ष सिद्ध करना कैसे संभव है। दूसरी बात यह भी है कि जिस हेतुसे सूक्ष्मादि पदार्थ अर्हन्तको प्रत्यक्ष होते हैं उसी हेतुसे बुद्ध आदिकोभी प्रत्यक्ष होंगे। यदि अनर्हन्त (बुद्ध आदि)में सूक्ष्मादि अर्थोंका प्रत्यक्ष माना जाय तो जैनोंको यह बात अनिष्ट है, क्योंकि जैन अर्हन्तको छोड़कर अन्य किसीको सर्वज्ञ नहीं मानते । यदि यह कहा जाय कि सूक्ष्मादि पदार्थ किसीको भी प्रत्यक्ष होते हैं, तो अर्हन्त और अनर्हन्तको छोड़कर और कौन शेष बचता है जिसमें सूक्ष्मादि अर्थोंका प्रत्यक्ष माना जाय ।
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