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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद- १
१. बोधिसत्वको कल्पना — हीनयानके अनुसार अर्हत्पदकी प्राप्ति ही भिक्षुका चरम लक्ष्य है । महायानके अनुसार बोधिसत्व महामैत्री और महा करुणासे युक्त होता है । अतः उसका लक्ष्य संसारके प्रत्येक प्राणीको क्लेशोंसे मुक्त कराना है ।
२. त्रिकायको कल्पना -- महायान बुद्धके तीन काय - धर्मकाय, संभोगकाय और निर्माणकाय — को मानता है । किन्तु हीनयान बुद्ध के निर्माणकाय और धर्मकायको ही मानता है ।
३. दशभूमिकी कल्पना — हीनयानके अनुसार अर्हत्पदकी प्राप्ति तक केवल चार भूमियाँ हैं— स्रोतापन्न, सकृदागामी, अनागामी और अर्हत् । परन्तु महायानके अनुसार निर्वाणकी प्राप्ति तक मुदिता आदि दश भूमियाँ होती हैं ।
४. निर्वाणकी कल्पना - हीनयान के अनुसार निर्वाण में क्लेशावरणका ही नाश होता है । किन्तु महायानके अनुसार निर्वाणमें ज्ञेयावरणका भी नाश हो जाता है । एक दुःखाभावरूप है तो दूसरा आनन्दरूप ।
५. भक्तिकी कल्पना - हीनयान ज्ञानप्रधान है, किन्तु महायान भक्ति प्रधान है । अतः महायानके समयमें बुद्धकी मूर्तियोंका निर्माण होने
लगा था ।
महायानका प्रचार भारतके उत्तरी प्रदेशों - तिब्बत, चीन, कोरिया, मंगोलिया, जापान आदिमें हैं । भारत के दक्षिण तथा पूरबके प्रदेशों - सिंघल बरमा, स्याम, जावा आदिमें हीनयानका प्रचार है ।
निर्वाण
बौद्धदर्शनके अनुसार निर्वाण निरोधरूप है । तृष्णादिक क्लेशोंका निरोध हो जाना ही निर्वाण है । भदन्त नागसेनने मिलिन्द प्रश्न में बतलाया है कि निर्वाणके बाद व्यक्तित्वका सर्वथा अभाव हो जाता है । जिस प्रकार जलती हुई आग की लपट बुझ जाने पर दिखलाई नहीं जा सकती उसी प्रकार निर्वाण प्राप्त हो जानेके बाद व्यक्ति दिखलाया नहीं
जा सकता ।
इसीप्रकार अश्वघोषने भी 'सौन्दरनन्द' काव्यमें बतलाया है' कि बुझा
१. दीपो यथा निर्वृतिभभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् ।
दिशं न काञ्चिद् विदिशं न काञ्चित् स्नेहक्षयात् केवलमेतिशान्तिम् । तथा कृती निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काञ्चिद् विदिशं न काञ्चित् क्लेशक्षयात् केवलमेति शान्तिम् ॥ — सौन्दरनन्द १६।२८, २९ ।
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