________________
कारिका-३] तत्त्वदीपिका
६५ शंका-जैन आदिके द्वारा सिद्ध सर्वज्ञका स्मरण करके सर्वज्ञका अभाव करने में क्या दोष है ?
उत्तर-परके द्वारा सिद्ध सर्वज्ञ प्रमाण है या नहीं। यदि प्रमाण है तो प्रमाणसिद्ध होनेसे मीमांसक को भी सर्वज्ञ मानना पड़ेगा। यदि परके द्वारा सिद्ध सर्वज्ञ प्रमाण नहीं है, तो वह न तो परको सिद्ध हो सकता है और न मीमांसक उसका स्मरण करके सर्वज्ञका अभाव सिद्ध कर सकता है। ___ शंका-जैन एकान्तका निषेध करके अनेकान्तकी सिद्धि कैसे करते हैं ? जिस प्रकार जैन दूसरे मतमें सिद्ध एकान्तका स्मरण करके एकान्तका निषेध करते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञका निषेध क्यों संभव नहीं है ?
उत्तर-अनन्तधर्मात्मक वस्तुकी अबाधित प्रतीति होनेपर एकान्तका निषेध करने में कौनसा दोष है। अनन्तधर्मात्मक वस्तुका ज्ञान स्वयं यह सिद्ध करता है कि वस्तु एकान्तरूप या एकधर्मात्मक नहीं है। इसी प्रकार सर्वज्ञका निषेध भी तभी हो सकता है जब सब पुरुषोंमें असर्वज्ञत्वका ज्ञान हो । किन्तु 'सब पुरुष असर्वज्ञ हैं', ऐसा ज्ञान संभव न होनेसे एकान्तके निषेधका दृष्टान्त यहाँ घटित नहीं होता है। इस प्रकार सर्वज्ञका बाधक कोई प्रमाण न होनेसे सर्वज्ञका सद्भाव मानना युक्तिसंगत है। __ शंका-सर्वज्ञका न कोई साधक प्रमाण है और न बाधक । इसलिये सर्वज्ञ के विषयमें संशय होना स्वाभाविक है ।
उत्तर-परस्पर विरोधी दोनों बातें एक ही स्थानमें संभव नहीं हैं। जिस प्रकार किसी वस्तुके विषयमें साधक और बाधक प्रमाण एक साथ नहीं हो सकते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञके विषयमें भी साधक प्रमाणोंका अभाव और बाधक प्रमाणोंका अभाव एक साथ नहीं हो सकता है। किसी वस्तुके साधक प्रमाण होनेसे उसकी सत्तामें और बाधक प्रमाण होनेसे उसकी असत्तामें कोई विवाद नहीं रहता है। तथा साधक प्रमाणका निर्णय न होनेसे वस्तुकी सत्तामें और बाधक प्रमाणका निर्णय न होनेसे वस्तुकी असत्ता में संशय उत्पन्न होता है। किन्तु ऐसा संभव नहीं है कि किसी वस्तुके विषयमें साधक-बाधक दोनों प्रमाणोंका सद्भाव अथवा साधकबाधक दोनों प्रमाणोंका अभाव हो । सर्वज्ञके विषयमें भी साधक-बाधक दोनों प्रमाणोंका अभाव संभव न होनेसे संशय मानना ठीक नहीं है। जब सर्वज्ञ के विषयमें बाधक प्रमाणोंका अभाव सुनिश्चित है, तब वहाँ साधक प्रमाणोंका अभाव कैसे हो सकता है । क्योंकि दोनों बातोंमें परस्परमें विरोध होनेसे एकके अभावमें दूसरेका सद्भाव सुनिश्चित है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org