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कारिका - ३]
तत्त्वदीपिका
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विशिष्ट है । इसलिये इस सिद्धान्तका नाम विशिष्टाद्वैत है । इस प्रकार वेदान्तदर्शन के दो प्रमुख मतोंका यहाँ संक्षिप्त विवेचन किया गया है ।
चार्वाकदर्शन
चार्वाकका कहना है कि न कोई तीर्थंकर प्रमाण है, न वेद प्रमाण है और न तर्क प्रमाण है । किसी अर्थको तर्कके द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता । क्योंकि उसी विषय में विरुद्ध युक्ति भी पायी जाती है । भावना आदि नाना अर्थों का प्रतिपादन करनेके कारण श्रुति भी प्रमाण नहीं है । ऐसा कोई मुनि (सर्वज्ञ) भी नहीं है जिसके वचनको प्रमाण माना जाय । धर्म कोई वास्तविक तत्त्व नहीं है । जिस मार्गका अनुसरण महाजन करते हैं वही मार्ग ठीक है' !
चार्वाकदर्शनके प्रवर्तक बृहस्पति माने जाते हैं । इस दर्शनका दूसरा नाम लोकायत भी है | चार्वाक पुण्य, पाप, आत्मा, मोक्ष, परलोक, स्वर्ग, नरक आदि कुछ भी नहीं मानते हैं । चार पुरुषार्थोंमेंसे अर्थ और काम ही उनके जीवनका चरम लक्ष्य है । वर्तमान समयमें अधिकांश लोग चार्वाक ही हैं । चाकको वर्तमान में भौतिकवादी कहते हैं ।
चार्वाकके जीवनका लक्ष्य है
यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
जबतक जीओ सुखपूर्वक जीओ । यदि सुखपूर्वक जीने के साधन न हों तो ऋण लेकर घृत, दूध आदि खाओ-पीओ | अगले जन्म में ऋण चुकानेकी चिन्ता करना भी व्यर्थ है, क्योंकि मृत्युके उपरान्त शरीरके भस्मीभूत हो जानेपर जीवका पुनर्जन्म नहीं होता है । और पुनर्जन्मके अभावमें अगले जन्ममें ऋण चुकानेका प्रश्न ही नहीं है ।
चार्वाकमत में शरीरसे पृथक कोई आत्मा नहीं मानी गई है । पृथिवी, अप्, तेज और वायु इन चार भूतोंके परस्पर में मिलने से एक विशेष शक्ति की उत्पत्ति होती है, इसी शक्तिका नाम आत्मा है । यह शक्ति शरीरके साथ ही उत्पन्न होती है और शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती है । जिसप्रकार महुआ आदि पदार्थोंके द्वारा एक विलक्षण मदिराशक्तिकी उत्पत्ति होती है, उसीप्रकार पृथिवी आदि भूतोंके द्वारा एक विलक्षण चैतन्य१. तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
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