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कारिका-३]
तत्त्वदीपिका नित्यद्रव्य और विशेष इन पाँच युगलोंमें अयुतसिद्धि रहती है । अतः इन पाँच युगलोंमें जो पारस्परिक सम्बन्ध है वह समवाय सम्बन्ध कहलाता है । जैसे गुण और गुणीके सम्बन्धका नाम समवाय सम्बन्ध है। ___अभाव-मूलमें अभाव दो प्रकारका है'-संसर्गाभाव और अन्योन्याभाव । दो वस्तुओंमें रहनेवाले संसर्ग (सम्बन्ध)के अभावका नाम संसर्गाभाव है । अन्योन्याभावका अर्थ यह है कि एक वस्तु दुसरी वस्तु नहीं है। अर्थात् उन दोनोंमें पारस्परिक भेद है। संसर्गाभाव तीन प्रकारका है---- प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव और अत्यन्ताभाव । इस प्रकार अभावके कुल चार भेद हैं। उत्पत्तिके पहिले कारणमें कार्यके अभावको प्रागभाव कहते हैं। प्रागभाव अनादि और सान्त है। नाशके बाद कारण में कार्यके अभावको प्रध्वंसाभाव कहते हैं। प्रध्वंसाभाव सादि और अनन्त है। जिन दो वस्तुओंमें वर्तमान, भूत तथा भविष्य तीनों कालोंमें कोई सम्बन्ध नहीं रहता है उनमें अत्यन्ताभाव होता है। जैसे आत्मा और आकाशमें अत्यन्ताभाव है। अत्यन्ताभाव अनादि और अनन्त है। दो वस्तुओंमें जो पारस्परिक भेद होता है वह अन्योन्याभाव है। जैसे घट पट नहीं है। इन दोनोंमें तादात्म्य सम्बन्धका अभाव है। संसर्गाभावको इस प्रकार व्यक्त करेंगे 'घट पटमें नहीं है। अन्योन्याभावका सूचक वाक्य यह होगा 'घट पट नहीं है।
परमाणुवाद नैयायिक-वैशेषिकोंने परमाणुओंको जगत्का उपादान कारण बतलाया है। दो परमाणुओंसे द्वयणुककी उत्पत्ति होती है। तीन द्वयणुकोंके संयोगसे त्र्यणुक या त्रसरेणुको उत्पत्ति होती है । चार त्रसरेणुओंके संयोगसे चतुरणुककी उत्पत्ति होती है। इस प्रकार आगे जगत्की सृष्टि होती । परमाणुओंमें क्रियाका कारण क्या है ? परमाणु स्वभावसे निष्क्रिय होते हैं। प्राचीन वैशेषिकोंने प्राणियोंके धर्माधर्मरूप अदृष्टको परमाणुओंमें कियाका कारण बतलाया है। पर बादके आचार्योंने अदृष्ट सहकृत ईश्वरकी इच्छाको ही परमाणुओंमें कियाका कारण माना है ।
१. अभावस्तु द्विधा संसर्गान्योन्याभावभेदतः।
प्रागभावस्तथाध्वंसोऽप्यत्यन्ताभाव एव च ।।
एवं वैविध्यमापन्नः संसर्गाभाव इष्यते। . -कारिकावलीका० १२, १३ । २. मणिगमणं सूच्यभिसर्पणमित्यदृष्टकारणम् । -वै० सू० ५।१।१५ ।
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