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आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका
१०२
नास्तित्व धर्म अस्तित्वका अविना
१६५
भावी है । विशेष्य विधेय और प्रतिषेध्य दोनों रूप होता है । शेष भंगों की निर्विरोध
१६७
व्यवस्था
१६९
एकान्तरूप वस्तुमें अर्थक्रियाका निषेध
प्रत्येक धर्ममें अर्थ - भिन्नता और धर्मोकी मुख्य- गौणता १७२ एक-अनेक आदि विकल्पोंमें भी सप्तभंगीकी प्रक्रियाकी योजना अद्वैत एकान्तकी सदोषता १७६ अद्वैत एकान्तमें कर्मद्वैत आदिका
१७३
१७८
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विवक्षा और अविवक्षा सत्की ही होती है । १९३ एक वस्तुमें भेद और अभेदकी निर्विरोध व्यवस्था १९४ नित्यत्व एकान्तकी सदोषता १९६ प्रमाण और कारकोंके नित्य होने पर विक्रियाका निषेध १९८
कार्यको सर्वथा सत् माननेमें १७० दोष
१९९
नित्यत्वैकान्तमें पुण्य-पाप आदिका निषेध २०१ क्षणिकान्तमें प्रत्यभाव आदिका
२०१
निषेध कार्यको सर्वथा असत् मानने में
२०६
दोष क्षणिकैकान्तमें
कार्यकारणभाव
आदिका निषेध सन्तानको संवृतिरूप माननेमें
२०९
दोष चतुष्कोटिविकल्प में अवक्तव्यत्वकी बौद्धमान्यता अवक्तव्यत्वकी उक्त मान्यतामें
२१०
२११
दोष अवस्तु विधि और निषेधका
अभाव
निषेध हेतु आदिसे अद्वैतसिद्धि माननेमें दोष १७९ अद्वैत का अविनाभावी है १८१ पृथक्त्व एकान्तकी सदोषता १८२ एकत्व के अभाव में सन्तान आदिका १८४ ज्ञानको ज्ञेयसे सर्वथा भिन्न मानने में दोष १८५ वचनों को सामान्यार्थक माननेमें दोष १८६ उभयैकान्त तथा अवाच्यतैकान्तकी सदोषता परस्परसापेक्ष पृथक्त्व और एकत्व तत्त्वकी अवाच्यताका निराकरण अर्थक्रियाकारित्व १९०
अभाव
२११ अवस्तुकी अवक्तव्यता और वस्तुकी अवस्तुता २१२ सब धर्मों को अवक्तव्य माननेमें
१८९
दोष
२१४
२१५
एक ही वस्तुमें पृथक्त्व और एकत्व - क्षणिकैकान्तमें कृतनाश और
की निर्दोष व्यवस्था
१९१
अकृताभ्यागमका प्रसंग २१६
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