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आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१ सत्ति और कारणैकार्थप्रत्यासति । तन्तुसंयोग कार्यैकार्थप्रत्यासत्तिके द्वारा वस्त्रका असमवायिकारण होता है। वस्त्र समवायसम्बन्धसे तन्तुओंमें रहता है और तन्तुसंयोग भी तन्तुओंमें रहता है। अतः तन्तुसंयोगकी वस्त्ररूप कार्यके साथ एक अर्थ ( तन्तु )में प्रत्यासत्ति होनेसे वह वस्त्रका असमवायिकारण है। इसी प्रकार तन्तुरूप कारणकार्थप्रत्यासत्तिके द्वारा वस्त्रके रूपका असमवायीकारण है। वस्त्रके रूपका समवायीकारण वस्त्र है और असमवायीकारण तन्तुरूप है। तन्तुरूप तन्तुओंमें रहता है और वस्त्रके रूपका समवायीकारण वस्त्र भी तन्तुओंमें रहता है। अतः तन्तुरूपको वस्त्ररूपके कारण वस्त्रके साथ एक अर्थ ( तन्तु )में प्रत्यासत्ति होनेसे वह वस्त्ररूपका असमवायीकारण है। ___ समवायिकारण द्रव्य होता है । तथा गुण और क्रिया असमवायीकारण होते हैं।
समवायी और असमवायी कारणसे भिन्न कारणको निमित्तकारण कहते हैं। जैसे वस्त्रकी उत्पत्तिमें जुलाहा, तुरी, वेम, शलाका आदि निमित्त कारण हैं।
न्यायदर्शनके अनुसार तन्तु अवस्थामें वस्त्रका नितान्त अभाव था और जब वस्त्र बनकर तैयार हो गया तो तन्तुओंसे भिन्न एक नवीन वस्तुकी उत्पत्ति हुई।
यहाँ कारणके प्रकरणमें अन्यथासिद्धका विचार कर लेना भो आवश्यक है। क्योंकि कारणको अन्यथासिद्ध नहीं होना चाहिये।
अन्यथासिद्धको पाँच प्रकारका बतलाया है ।
१. घटके प्रति दण्डत्व अन्यथासिद्ध है क्योंकि दण्डत्वसे युक्त दण्ड ही घटका कारण होता है, दण्डत्वरहित दण्ड नहीं ।
२. घटके प्रति दण्डरूप अन्यथासिद्ध है। घटके प्रति दण्डरूपका स्वतंत्र अन्वय-व्यतिरेक नहीं है किन्तु घटके साथ दण्डका अन्वय-व्यतिरेक होनेसे
प्रत्यासत्तिरस्ति । द्वितीयं यथा-घटरूपं प्रति कपालरूपमसमवायिकारणम् । तत्र स्वगतरूपादिकं प्रति समवायिकारणं घटः, तेन सह कपालरूपस्यैकस्मिन् कपाले प्रत्यासत्तिरस्ति ।
-मुक्तावली, पृ० ३२ । १. समवायिकारणत्वं द्रव्यस्यैवेति विज्ञेयम् ।
गुणकर्ममात्रवृत्ति ज्ञ यमथाप्यसमवायिहेतुत्वम् ।।-- कारिकावली, का० २३ । २. निमित्तकारणं तदुच्यते यन्न समवायिकारणं, नाप्यसमवायिकारणं, अथ च
कारणं तत् यथा वेमादिकं पटस्य निमित्तकारणम् । –तर्कभाषा, पृ० ११ ।
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