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प्रस्तावना
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नय विमर्श अधिगमके उपायोंमें प्रमाणके साथ नयका निर्देश किया गया है । प्रमाण सम्पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है और नय प्रमाणके द्वारा गृहीत वस्तुके एक अंशको जानता है । आचार्य समन्तभद्रने प्रमाणको 'स्याद्वादनयसंस्कृत' बतलाकर श्रुतज्ञानको 'स्याद्वाद' शब्दसे अभिहित किया है। अकलंक देवने भी उसीका अनुसरण करते हुए लघीयस्त्रयमें श्रुतके दो उपयोग बतलाये हैं—एक स्याद्वाद और दूसरा नय । नयका स्वरूप
अकलंकदेवने ज्ञाताके अभिप्रायको नय कहा है। धर्मभूषण यतिने 'प्रमाणके द्वारा गृहीत अर्थके एक देशको ग्रहण करनेवाले प्रमाताके अभिप्राय विशेषको नय कहा है। देवसेनने नयचक्रमें कहा है कि जो वस्तुको नाना स्वभावोंसे व्यावृत्त करके एक स्वभावमें ले जाता है वह नय है। आचार्य समन्तभद्रने स्याद्वादसे गृहीत अर्थके नित्यत्वादि विशेष धर्मके व्यंजकको नय कहा है। आचार्य विद्यानन्दने बतलाया है कि जिसके द्वारा श्रुतज्ञानके विषयभूत अर्थके अंशको जाना जाता है वह नय है। इन सब लक्षणोंका फलितार्थ यही है कि नय वस्तुके एक देश या एक धर्मको जानता है।
नय प्रमाणका एक देश है
नय प्रमाण है या अप्रमाण ? इस प्रश्नका उत्तर यही है कि नय न तो प्रमाण है और न अप्रमाण, किन्तु प्रमाणका एक देश है। जैसे घड़ेमें भरे हुए समुद्रके जलको न तो समुद्र कह सकते हैं और न असमुद्र ही। अतः जैसे घड़ेका जल समुद्रका एक देश है, असमुद्र नहीं, उसी प्रकार नय भी प्रमाणका एक देश है, अप्रमाण नहीं। नयके द्वारा ग्रहण की १. स्याद्वादकेवलज्ञाने ।
आप्तमी० का० १०५ २. उपयोगी श्रु तस्य द्वौ स्याद्वादनयसंज्ञितौ। -लघीयस्त्रय श्लो० ३२ ३. नयो ज्ञातुरभिप्रायः ।
-लघीयस्त्रय श्लो० ५५ ४. प्रमाणगृहीतार्थंकदेशग्राही प्रमातुरभिप्रायविशेषः नयः ।
-न्यायदीपिका ५. नानास्वभावेभ्यः व्यवृत्य एकस्मिन् स्वभावे वस्तुं नयतीति नयः ।
-नयचक्र पृ० १ ६. स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यञ्जको नयः । -आप्तमी० का० १०६ ७. नीयये गभ्यते येन श्रु तार्थांशो नयो हि सः । -तत्वा० श्लो० वा० ११३३१६
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