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आप्तमीमांसा-तत्त्वदीपिका
द्वेषादिरूप परिणामोंसे होता है । कर्मबन्ध करने वाले जीव शुद्धि और अशुद्ध भेदसे दो प्रकारके हैं । १००वीं कारिका द्वारा यह कहा गया है कि पाक्य और अपाक्य शक्तिकी तरह शुद्धि और अशुद्धि ये दो शक्तियाँ हैं, और इनको व्यक्ति ( अभिव्यक्ति) क्रमशः सादि और अनादि है ।
१०१वीं कारिकामें प्रमाणका स्वरूप बतलाकर उसके अक्रमभावी और क्रमभावी ये दो भेद किये गये हैं तथा उन्हें स्याद्वादनयसंस्कृत बतलाया गया है । १०२वीं कारिकामें प्रमाणका फल बतलाया गया है । केवलज्ञानका साक्षात् फल अज्ञाननिवृत्ति है और परम्पराफल उपेक्षा है । मति आदि ज्ञानोंका साक्षात् फल अज्ञाननिवृत्ति है और परम्पराफल आदानबुद्धि उपादानबुद्धि और उपेक्षाबुद्धि है । १०३वीं कारिका द्वारा बतलाया गया है कि 'स्याद्वाद' शब्दके अन्तर्गत 'स्यात्' शब्द एक धर्मका वाचक होता हुआ अनेकान्तका द्योतक होता है । १०४वीं कारिकामें कहा गया हैं कि सर्वथा एकान्तका त्याग कर देने से स्याद्वाद सात भंगों और नयों की अपेक्षा सहित होता है । तथा वह हेय और उपादेय में भेद कराता है । १०५वीं कारिका में स्याद्वाद ( श्रुतज्ञान) के महत्त्वको बतलाते हुए कहा गया है कि स्याद्वाद और केवलज्ञान दोनों सर्वतत्त्वप्रकाशक हैं । उनमें केवल यही अन्तर है कि केवलज्ञान साक्षात् तत्त्वोंका प्रकाशक है और स्याद्वाद असाक्षात् उनका प्रकाशक है । १०६वीं कारिकामें हेतु तथा नयका स्वरूप बतलाया गया है । १०७वीं कारिकामें द्रव्यका स्वरूप बतलाते हुए कहा गया है कि नय और उपनयोंके विषयभूत त्रिकालवर्ती धर्मोके समुच्चयका नाम द्रव्य है । १०८वीं कारिका द्वारा एक महत्त्व पूर्ण शंकाका समाधान किया गया है । शंका यह है कि एकान्तोंके समूह का नाम अनेकान्त है और एकान्त मिथ्या हैं तब उनका समूह अनेकान्त भी मिथ्या होगा । शंकाका समाधान करते हुए कहा गया है कि निरपेक्ष नय मिथ्या होते हैं और सापेक्ष नय अर्थक्रियाकारी होते हैं । अतः सापेक्ष एकान्तों का समूह अनेकान्त मिथ्या नहीं है । १०९वीं कारिका द्वारा यह बतलाया गया है कि अनेकान्तात्मक अर्थका वाक्य द्वारा नियमन कैसे होता है । जो लोग विधिवाक्यको केवल विधिका और निषेधवाक्यको केवल निषेधका नियामक मानते हैं, उनकी समीक्षा करते हुए कहा गया है कि चाहे विधिवाक्य हो, और चाहे निषेधवाक्य दोनों ही विधि और निषेधरूप अनेकान्तात्मक अर्थका बोध कराते हैं । ११०वीं कारिकामें 'वाक्य विधिके द्वारा ही वस्तुतत्त्वका नियमन करता है' ऐसे एकान्तका निराकरण करते हुए कहा गया है कि वस्तु तत् और अतत्रूप है । जो उसे
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