________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र 1 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी ? समागमेणं निपिण्णे आवस्सयसुय खंधे भावखंधेत्ति लब्भइ,सेतं नो आगमओ भावखंधे,से तं भावखंधे // 11 // तस्सणं इमे एगट्रिया णाणा घोसा, णाणा वंजणा, नामधेजा भवंति, तंजहा-(गाहा)गणकाए निकाएचिए,खंधे,वग्गे,तहेव रासीयापुंजय पिंडे निगरे, संघाए आउल समहे // 1 // से तं खंधे // * // आवस्सगस्सणं इमे अस्थाहिगारा भवंति, तजहा-(गाहा) सावजजोगविरई उकित्तण गुणवओय पडिवत्ती,॥ खलिच स्स निंदणा, वणतिगिच्छ गुण धारणा चेव // 1 // आवस्सयस्सणं एसो पिंडत्यो स्कंध के बारह नाम कहते हैं-यह भाव स्कंध एकार्थ वाची, अनेक घोष, अनेक व्यंजनवाला है. इस के नाम-१ गण-बहुतों का मीलना, 2 काय-पट्काय समान, 3 निकाय-शरीर तुल्य, 4 स्कंध- वृक्ष के ध जैसा, 5 वर्ग-गौवर्ग सपान, 6 राशि-ढग समान, 7 पूंज-धान्यादि के पूंज समान, 8 पिंडमुशिका के पिण्ड समान, 9 निकर-उपचित हवा, 10 संघात-संघातन, 11 आकुल-कुल के समान और 12 समुह. यह स्कंध का तीसरा अधिकार हुवा // 3 // * // अब इन आवश्यक श्रुत, व स्कंध इन तीनों के चार 2 निक्षेप करके चौथा आवश्यक के अध्ययन का कथन करते हैं. आवश्यक के निम्नोक्त अर्थाधिकार होते हैं. जैसे कि सावध योग की विरति रूप प्रथम अध्ययन, 2 गुण कीर्तन रूप 7 प्रकाशक-राजाबहादुर लाल मुखदेवसहायजी ज्वालामसादनी For Private and Personal Use Only