________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 9 1300 अवचिए तरस चेव देसे उवचिए, से तं अंणेगदध्वियं खंधे. सें ते जाणय सरीर भविध सरीर वइरित्ते दवेखंधे, से तं नो आगमओ दव्वखंधे. से तं दव्य खंधे / / 9 / / से किं तं भावखंधे ? भाव खंधे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमओय, नो आगमओय // 10 // से किं तं आगमओ भावखंधे ? आगमओ भावखंधे जाणए उवउत्ते, से तं आगमओ भावखंथे // से किं तं नो आगमओ भावखंधे ? नो आगमओ भावखंधे एएसिं चेव सामाक्ष्य माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय समिइ एकत्रिशतम-अनुयोगद्वार मुत्र-चतुर्थ मूल स्कन्ध पर चार निक्षपे अनेक द्रव्य स्कंध कहते हैं, यह ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्ब स्कंध रहा. यह नो आगम से द्रव्य स्कंध इवा. यह द्रव्य स्कंध का कथन पूरा हुवा // 9 // अहो भगवन् ! भाव स्कंध किसे कहते हैं। अहो गीतप! भाव स्कंध के दो भेद कहे हैं. तद्यथा-१ आगम से और 2 नो आगम से // 1 // अहोर भगवन ! मागम से भाव स्कंध किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपयोग पूर्वक स्कंध का अर्थ परमार्थ को जाने सो. यह आगम से भाव स्कध हुवा. अहो भगवन् ! नो आगम से भाव स्कंध किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! सामायिकादि छ ही अध्ययन एकत्रित करने से मूत्र का जो स्कंध होता है वह नो *आगम से भाव स्कंध है. यह भाव स्कंध का अधिकार हुवा. यह स्कंध पर चारों निक्षेप हुए // 11 // अब | 1498 - For Private and Personal Use Only