Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 116
________________ ( ८८ ) पर रही ओस की बूँद जैसा अस्थिर है, संध्या की लालिमा और स्वप्न के समान अस्थाई है, और सड़ने, गिरने तथा नाश होने वाला है। अतः यह तो पहले हो या बाद में, अवश्य ही त्यागने योग्य है और फिर यह किसने जाना है कि कौन पहले जायेगा और कौन बाद में ? इसलिए हे माता - पिता मैं आपकी आज्ञा लेकर भगवान महावीर के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ ।" 89. Megh Kumar replied, “Parents! What you say is correct but know that this human life is mutable, uncertain, and fleeting. It is handicapped with vices and plagued by afflictions. It is flickering and inconstant like lightening, fleeting like a bubble and a dew drop on the edge of grass, ephemeral like the crimson of the dusk or a dream. It is perishable, decayable, and destructible. As such, sooner or later it has to be abandoned. Moreover, who ever knows who will go earlier and who, later? So, parents! with your permission I want to go to Shraman Bhagavan Mahavir and get initiated." ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ९०. तए णं तं मेहं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - "इमाओ ते जाया ! सरिसियाओ सरिसत्तयाओ सरिसव्वयाओ सरिसलावन्नरूवजोव्वणगुणोववेयाओ सरिसेहिन्तो रायकुलेहितो आणियल्लियाओ भारियाओ, तं भुंजाहि णं जाया ! एताहि सद्धिं विपुले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइस्सति । ” सूत्र ९०. तब माता-पिता ने कहा - " हे पुत्र ! तुम्हारी ये समान गुणों वाली ( पूर्व सम ) पत्नियाँ हैं । इनके साथ मनुष्योचित दाम्पत्य जीवन के सुखों और आनन्द का भोग करो और तब सब भोगों से तुष्ट होकर दीक्षा ग्रहण कर लेना ।” 90. The parents said, "Son! You have all these beautiful wives (as detailed earlier). Enjoy all the pleasures and joys of your marital life with them and when you are fully contented go and get initiated." Jain Education International सूत्र ९१. तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरं एवं वयासी - " तहेव णं अम्मयाओ ! जं णं तुभे ममं एवं वह - इमाओ ते जाया ! सरिसियाओ जाव समणस्स भगवओ महावीरस्स पव्वइस्ससि– एवं खलु अम्मयाओ ! माणुस्सगा कामभोगा असुई असासया वंतासवा पित्तासवा खेलासवा सुक्कासवा सोणियासवा दुरुस्सासनीसासा दुरुयमुत्त-पुरीसपूय - बहुपडिपुन्ना उच्चार- पासवण - खेल - जल्ल-सिंघाणग-वंत-पित्त - सुक्क सोणितसंभवा अधुवा अणियया असासया सडण - पडण - विद्धंसणधम्मा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा । (88) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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