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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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able, pious, vigorous, ever evolving, excellent, and extremely potent penances ascetic Megh became weak, famished, shriveled, lean and anaemic. With every movement his joints rattled. He appeared like a fleshless skeleton covered by skin only, and bluish veins became visible on his wiry body.
He could remain standing and walk only by force of his will. He got tired when he spoke; even the effort of speaking was too much for him.
सूत्र १५६. से जहानामए इंगालसगडियाइ वा, कट्ठसगडियाइ वा, पत्तसगडियाइ वा, तिलसगडियाइ वा, एरंडकट्ठसगडियाइ वा, उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससदं गच्छइ, ससई चिट्ठइ, एकमेव मेहे अणगारे ससई गच्छइ, ससदं चिट्ठइ, उवचिए तवेणं, अवचिए मंससोणिए णं, हुयासणे इव भासरासिपरिच्छन्ने, तवेणं तेए णं तवतेयसिरीए अईव अईव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ।
सूत्र १५६. कोयले, लकड़ी, सूखे पत्ते, तिनके, डंठल अथवा एरंड से भरी गाड़ी को धूप में और भी सुखाने के बाद चलाने पर वह खड़खड़ाहट के साथ चलती है और खड़खड़ाती आवाज के साथ ही रुकती है। ठीक उसी प्रकार मेघ अनगार भी हड्डियों की खड़खड़ाहट के साथ चलते और रुकते थे। वे माँस और रुधिर से तो क्षीण हो गये थे पर तपस्या के तेज से पुष्ट थे। राख के ढेर से घिरे अंगारे के समान वे तप तेज से देदीप्यमान हो गये थे। तप के तेजरूपी लक्ष्मी से शोभित हो गये थे। ___156. As a cart filled with coal, wood, dry leaves, twigs, branches or castor nuts and further dried in sun rattles while moving as well as when stopped; ascetic Megh's bones also rattled while moving or when he stopped. Although he was lean and anaemic he glowed with the aura of penance. Like embers in a heap of ash he had become radiant with the sheen of penance. He had become rich with the wealth of penance.
सूत्र १५७. तेणं कालेणं तेणं समए णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव पुव्वाणुपुब्बिं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे, जेणामेव रायगिहे नगरे जेणामेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
सूत्र १५७. काल के उस भाग में धर्म के प्रतिपादक, तीर्थ के स्थापक श्रमण भगवान महावीर एक गाँव से दूसरे गाँव में विहार करते राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में आये और यथाविधि ठहरे।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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