Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 473
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ४०३ ) TRUST MBER OMG --- - GODS PERFORM THEIR DUTY 147. During that period of time the kings of gods at the edge of the universe in their gorgeous abodes in the space vehicles located in the Arishta area of the Brahmalok, the fifth dimension of gods were enjoying dance and vocal music accompanied by instrumental music. Everyone of these kings was surrounded by four thousand gods owning space vehicles, three assemblies, seven armies with their commanders, sixteen thousand body guards and many other gods. The names of these kings of gods are-1. Saraswat, 2. Aditya, 3. Vanhi, 4. Varun, 5. Gardatoya, 6. Tushit, 7. Avyabaadh, 8. Agneya, and 9. Risht. (of these first eight reside in eight different dimensions in the level of darkness or Krishna Raji and the ninth in the level known as Risht) सूत्र १४८. तए णं तेसिं लोयंतियाणं देवाणं पत्तेयं पत्तेयं आसणाई चलंति, तहेव जाव “अरहंताणं निक्खममाणाणं संबोहणं करेत्तए त्ति तं गच्छामो णं अम्हे वि मल्लिस्स अरहओ संबोहणं करेमो।' त्ति कटु एवं संपेहेंति, संपेहित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभायं वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणंति, समोहणित्ता संखिज्जाइं जोयणाई एवं जहा जंभगा जाव जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे, जेणेव मल्ली अरहा, तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवन्ना सखिंखिणियाइं जाव वत्थाई पवरपरिहिया करयल ताहिं इटाहिं जाव एवं वयासी___ “बुज्झाहि भयवं ! लोगनाहा ! पवत्तेहि धम्मतित्थं, जीवाणं हिय-सुह-निस्सेयसकरं भविस्सइ'' त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयंति। वइत्ता मल्लिं अरहं वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। __ सूत्र १४८. इन सभी लोकान्तिक देवों के आसन डोलने लगे तो उन्होंने अर्हत् मल्ली की दीक्षा लेने की इच्छा जानकर विचार किया-“दीक्षा लेने की इच्छा करने वाले तीर्थंकरों को सम्बोधित करना हमारा परम्परागत कर्त्तव्य है अतः हमें उसका पालन करना चाहिये।" फिर उन्होंने यथाविधि उत्तर वैक्रिय शरीर धारण किया और जंभृक देवों की तरह असंख्यात योजन पार कर कुंभ राजा के महल में प्रवेश किया। नूपुरों की ध्वनि वाले पंचरंगे परिधान धारण किये वे देव अर्हत् मल्ली के पास आकर हाथ जोड़कर मधुर स्वर में बोले__"हे भगवान ! हे लोकनाथ ! बोध प्राप्त करो। जीवों के लिए हितकारी, सुखकारी और मोक्ष के मार्ग रूप धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करो।" ये वचन तीन बार उच्चारित कर अर्हत् मल्ली को वन्दना-नमस्कार कर वे लौट गये। D PAHITRA म HR CHAPTER-8 : MALLI (403) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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