Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 472
________________ ( ४०२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र CRO wo OLO 6 AHADNA - “On the occasion of the initiation of a Tirthankar; the one who is revered by god, demon, deity, devil, king, and emperor alike; it is announced as well as done that charity will be given to all and sundry as much as they desire." सूत्र १४६. तए णं मल्ली अरहा संवच्छरेणं तिन्नि कोडिसया अट्ठासीइं च होंति कोडीओ असिइं च सयसहस्साइं इमेयारूवं अत्थसंपयाणं दलइत्ता निक्खमामि त्ति मणं पहारेइ। सूत्र १४६. तीन अरब अट्ठासी करोड़ अस्सी लाख सुवर्ण-मुद्राओं का दान दे चुकने पर अर्हत् मल्ली ने निश्चय किया कि अब मैं दीक्षा ग्रहण करूँ। ___146. When the total amount provided by the gods was given in charity Arhat Malli decided that now she will get initiated. देवों का कर्तव्य-पालन सूत्र १४७. तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे रिट्टे विमाणपत्थडे सएहिं सएहिं विमाणेहिं, सएहिं सएहिं पासायवडिंसएहिं, पत्तेयं पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य बहूहिं लोगंतिएहिं देवेहिं सद्धिं संपरिवुडा महयाहयनट्टगीयवाइय जाव रवेणं भुंजमाणा विहरंति। तं जहा सारस्सयमाइच्चा, वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य॥ सूत्र १४७. काल के उस भाग में लोकान्तिक देवराज ब्रह्मलोक नामक पाँचवें देवलोक के अरिष्ट नामक विमान-क्षेत्र में अपने-अपने विमान और उत्तम निवास में उच्च स्वरों में बजते वाद्य-यन्त्रों की ध्वनियों के बीच नृत्य और गायन का आनन्द ले रहे थे। उनमें से प्रत्येक चार-चार हजार सामानिक देवों, तीन-तीन परिषदों, सात-सात सेनापतियों सहित लश्करों, सोलह-सोलह हजार आत्मरक्षक देवों और अनेक लोकान्तिक देवों से घिरे हुए थे। उन (नव लोकान्तिक) देवराजों के नाम हैं-(१) सारस्वत, (२) आदित्य, (३) वह्नि, (४) वरुण, (५) गर्दतोय, (६) तुषित, (७) अव्याबाध, (८) आग्नेय, तथा (९) रिष्ट।१। १. इनमें से आठ कृष्ण राजि के मध्य आठ विमानों में रहते हैं। रिष्ट, रिष्ट नामक विमान प्रतर में रहते हैं। Sane 402) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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