Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 470
________________ Ormo ( ४०० ) रायहाणी, जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभगस्स रणो भवसि तिनि कोडिसया जाव साहरति । साहरित्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव पच्चप्पिणंति । तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता करयल जाव पच्चप्पिणइ । सूत्र १४२. जृंभक देव यह आज्ञा सुनकर उत्तर-पूर्व दिशा में गये। वहाँ उन्होंने उत्तरवैक्रिय शरीर धारण किया और कुंभ राजा के महल में पहुँचे। वहाँ उन्होंने आज्ञानुसार द्रव्य रख दिया और वापस लौटकर वैश्रमण को कार्य सम्पन्न होने की सूचना दी। वैश्रमण ने जाकर यह सूचना शक्रेन्द्र को दी । ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 142. The Jrimbhak gods went in the north east direction after getting this order. There they transformed themselves into Uttar Vaikriya bodies and reached King Kumbh's palace. They placed the wealth as instructed, returned and reported to Vaishraman who in turn reported to Shakrendra. सूत्र १४३. तए णं मल्ली अरहा कल्लाकल्लिं जाव मागहओ पायरासो त्ति बहूणं सणांहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य करोडियाण य कप्पडियाण य एगमेगं हिरण्णकोडिं अट्ठ य अणूणाई सयसहस्साहं इमेयारूवं अत्थसंपदाणं दलय | सूत्र १४३. मल्ली अर्हत् ने इसके बाद प्रातः काल से मध्यान्ह के भोजन पूर्व तक प्रतिदिन एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मुद्राएँ दान में देना आरंभ किया। दान प्राप्त करने वालों में सनाथ, अनाथ, पांथिक, पथिक, करोटिक, कार्पटिक आदि सभी थे। 143. After this Arhat Malli started giving in charity ten million eight hundred thousand gold coins every day up to lunch time. Those who received charity included beggars, mendicants, travelers, wayfarers, orphans as well as the well off. Jain Education International कुंभ की भोजनशालाएँ सूत्र १४४. तए णं से कुंभए राया मिहिलाए रायहाणीए तत्थ तत्थ तहिं तहिं देसे देसे बहूओ महाणससालाओ करेइ । तत्थ णं बहवे मणुया दिण्णभइ भत्त-वेयणा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेंति । उवक्खडित्ता जे जहा आगच्छंति तं जहा - पंथिया वा, पहिया वा, करोडिया वा, कप्पडिया वा, पासंडत्था वा, गिहत्था वा तस्स य तहा 400) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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