Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ३. तेणं कालेणं तेणं समए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ।
तए णं से इंदभूई नाम अणगारे जायसढे जाव एवं वयासी-“कहं णं भंते ! जीवा गुरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्यमागच्छंति ?"
सूत्र ३. काल के उस भाग में भगवान के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति अनगार भी उनके पास ध्यान साधना में लीन रहते थे। जिज्ञासा एवं श्रद्धा से अभिभूत इन्द्रभूति ने भगवान से प्रश्न किया-"भंते ! जीव शीघ्र ही गुरुता तथा लघुता को कैसे प्राप्त होता है ?"
3. During that period of time the chief disciple of Bhagavan, ascetic Indrabhuti, was also there. He used to be engrossed in his spiritual practices under the guidance of Shraman Bhagavan Mahavir. With absolute faith Indrabhuti put a question to Bhagavan, “Bhante! How does a being quickly reach the heavy states (of soul) and the light state (of soul)?"
गुरुता का कारण ___ सूत्र ४. “गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कं तुंबं णिच्छिदं निरुवहयं दब्भेहिं कुसेहिं वेढेइ, वेढित्ता मट्टियालेवेणं लिंपड़, उण्हे दलयइ, दलइत्ता सुक्कं समाणे दोच्चं पि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढित्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे सुक्के समाणं तच्चं पि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढित्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ। एवं खलु एएणुवाए णं अंतस वेढेमाणे अंतरा लिंपेमाणे, अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अहिं मट्टियालेवेहिं आलिंपइ, अत्थाह-मतार-मपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा। से णूणं गोयमा ! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गुरुययाए भारिययाए गरुयभारिययाए उप्पिं सलिलमइवइत्ता अहे धरणियलपइट्ठाणे भवइ।
एवामेव गोयमा ! जीवा वि पाणाइवाए णं जाव मिच्छादसणसल्लेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ समज्जिणंति। तासिं गरुययाए भारिययाए गरुयभारिययाए कालमासे कालं किच्चा धरिणयलमइवइत्ता अहे नरगतलपइट्ठाणा भवंति। एवं खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति।" __सूत्र ४. “गौतम ! यदि कोई व्यक्ति एक बड़ा-सा बिना छेद वाला, बिना टूटा तुम्बा ले, उस पर नारियल के रेशे और दूब लपेटे तथा ऊपर से मिट्टी का लेप करे और धूप में रख |
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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