Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 348
________________ ( २९४ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र HTRA a LA HOME AR जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्झाएज्जासि" त्ति कटु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ। सूत्र ४. दूसरे दिन अपनी योजनानुसार उसने अपने स्वजनों तथा चारों पुत्र-वधुओं के पीहर वालों को आमंत्रित किया और भोज-सामग्री तैयार करवाई। ___ तब धन्य सार्थवाह स्नानादि कर भोजन मंडप में अच्छे आसन पर बैठा और उसने सब अतिथियों के साथ सुखपूर्वक भोजन किया। अतिथियों का पुष्प-गंधादि से यथोचित सम्मान करने के बाद उनके सामने ही हाथ में चावल के पाँच दाने लिये और बड़ी पुत्र-वधू उज्झिका को बुलाकर कहा-“हे पुत्री ! तुम मेरे हाथ से ये पाँच चावल के दाने ले लो और इनको पूरी सार-सँभाल से अपने पास रखो। भविष्य में जब भी मैं ये पाँच दाने माँगें तब मुझे यही पाँच दाने वापस लौटाना।" यह कहकर उसने वे दाने उज्झिका के हाथ में दिये और उसे विदा कर दिया। TESTING THE DAUGHTERS-IN-LAW 4. Next day as per his plan he made arrangements for the feast and invited his friends as well as the parents and relatives of the four daughters-in-law. Dhanya Merchant got ready after taking his bath, came and took a seat at an appropriate place in the pavilion prepared for the feast. He enjoyed the food with his guests and then, honoured them with flowers, perfumes, etc. He then took five grains of rice in his hand, called the eldest daughter-in-law and said, “Daughter! Take these five grains of rice and keep them with you taking all possible care. In future when I ask for these, you should return me the very same five grains.” He handed over those five grains and told her to go. सूत्र ५. तए णं सा उज्झिया धण्णस्स तह ति एयमढें पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जेत्था-एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिट्ठति, तं जया णं ममं ताओ इमे पंच सालिअक्खए जाएस्सइ, तया णं अहं पल्लंतराओ अन्ने पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि" ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए एगंते एडेइ, एडित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था। Biha (294) JNATA DHARMA KATHANGA SŪTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492