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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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जाएज्जा, तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्झाएज्जासि" त्ति कटु सुण्हाए हत्थे दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ।
सूत्र ४. दूसरे दिन अपनी योजनानुसार उसने अपने स्वजनों तथा चारों पुत्र-वधुओं के पीहर वालों को आमंत्रित किया और भोज-सामग्री तैयार करवाई। ___ तब धन्य सार्थवाह स्नानादि कर भोजन मंडप में अच्छे आसन पर बैठा और उसने सब अतिथियों के साथ सुखपूर्वक भोजन किया। अतिथियों का पुष्प-गंधादि से यथोचित सम्मान करने के बाद उनके सामने ही हाथ में चावल के पाँच दाने लिये और बड़ी पुत्र-वधू उज्झिका को बुलाकर कहा-“हे पुत्री ! तुम मेरे हाथ से ये पाँच चावल के दाने ले लो और इनको पूरी सार-सँभाल से अपने पास रखो। भविष्य में जब भी मैं ये पाँच दाने माँगें तब मुझे यही पाँच दाने वापस लौटाना।" यह कहकर उसने वे दाने उज्झिका के हाथ में दिये और उसे विदा कर दिया।
TESTING THE DAUGHTERS-IN-LAW
4. Next day as per his plan he made arrangements for the feast and invited his friends as well as the parents and relatives of the four daughters-in-law.
Dhanya Merchant got ready after taking his bath, came and took a seat at an appropriate place in the pavilion prepared for the feast. He enjoyed the food with his guests and then, honoured them with flowers, perfumes, etc. He then took five grains of rice in his hand, called the eldest daughter-in-law and said, “Daughter! Take these five grains of rice and keep them with you taking all possible care. In future when I ask for these, you should return me the very same five grains.” He handed over those five grains and told her to go.
सूत्र ५. तए णं सा उज्झिया धण्णस्स तह ति एयमढें पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ, एगंतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जेत्था-एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्ला सालीणं पडिपुण्णा चिट्ठति, तं जया णं ममं ताओ इमे पंच सालिअक्खए जाएस्सइ, तया णं अहं पल्लंतराओ अन्ने पंच सालिअक्खए गहाय दाहामि" ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए एगंते एडेइ, एडित्ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था।
Biha
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JNATA DHARMA KATHANGA SŪTRA
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