Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 408
________________ ( 388 ) राजा चन्द्रच्छाय सूत्र ४६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगे नाम जणवए होत्था । तत्थ णं चंपानामं यरी होत्था । तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था । सूत्र ४६. काल के उसी भाग में अंग जनपद की चम्पानगरी में अंगराज चन्द्रच्छाय राज्य करते थे। KING CHANDRACCHAYA 46. During that period of time King Chandracchaya reigned over Champa city in the Anga country ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र ४७. तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नकपामोक्खा बहवे संजत्ता णावावाणियगा परिवसंति, अड्डा जाव अपरिभूया । तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था, अहिगयजीवाजीवे, वन्नओ । सूत्र ४७. चम्पानगरी में अर्हनक आदि अनेक समृद्धिशाली और प्रतिष्ठित सांयात्रिक (विदेश जाकर व्यापार करने वाले) और नौवणिक् (नौकाओं से व्यापार करने वाले ) रहते थे । अर्हन्नक एक श्रमणोपासक था और जीव- अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था (विस्तृत वर्णन पूर्व सम ) | 47. In the city of Champa lived Arhannak and other wealthy and reputed Sanyantriks (merchants who went to other countries for trade) and Nauvaniks (merchants who carried their merchandise in boats). Arhannak was a Shramanopasak (a worshiper of Shramans or a Jain) and conversant with fundamentals like being and matter (details as before ). सूत्र ४८. तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ताणावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमे एयारूवे मिहो कहासंलावे समुपज्जित्था - "सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दे पोय-वहणेण ओगाहित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नं एयमट्ठ पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता सगडिसागडियं च सज्जेंति, सज्जित्ता गणिमस्स च धरिमस्स च मेज्जस्स च पारिच्छेज्जस्स च भंडगस्स सगडसागडियं भरेंति, भरिता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तमुहुत्तंसि विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, मित्त-णाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियणं भोयणवेलाए भुंजावेंति जाव आपुच्छंति, आपुच्छित्ता सगडिसागडियं (344) Jain Education International JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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