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ज्ञाताधर्मकशांग सूत्र
चित्र परिचय
THE ILLUSTRATIONS EXPLAINED
दृढधर्मी अर्हन्त्रक
चित्र : २३
चम्पा नगरी का धनाढ्य व्यापारी अर्हन्नक वीतराग अरिहन्त का उपासक था। धर्म की दृढ़ श्रद्धा उसकी रग-रग में रमी थी। एक बार वह बहुत से व्यापारियों को साथ लेकर लवणसमुद्र की यात्रा पर गया। यात्रा करते हुए अचानक समुद्र में भारी तूफान उठा । प्रचण्ड पवन वेग से नाव के मस्तूल टूट गये। और नाव समुद्र में हिचकोले खाने लगी। सभी यात्री घबरा उठे। तभी अचानक आकाश में एक भयंकर दैत्य विकराल रूप लिए दिखाई दिया। अर्हनक को सम्बोधित करके उसने ललकारा - " हे अर्हन्त्रक ! आज तेरी और तेरे सभी साथियों की मौत सामने खड़ी है, मैं अभी तेरी नाव को उलटकर समुद्र में डुबो दूंगा और तुम सब लवण समुद्र में डूबकर मच्छ- कच्छ के भक्ष्य बन जाओगे। हाँ, यदि तू मेरी बात मानकर निर्ग्रन्थ प्रवचन का त्याग करके, अपने लिए हुए व्रतों को छोड़ दे, तो मैं तुम्हें जीवित छोड़ दूँगा । "
राक्षस की ललकार से सभी यात्री घबरा रहे हैं । परन्तु अर्हन्त्रक निर्भीक बैठा अपने आराध्य अरिहन्त प्रभु का स्मरण कर रहा है। राक्षस के बार-बार डराने धमकाने पर भी अर्हन्त्रक अविचल शान्त बैठा रहा। अन्त में उसकी दृढ़-धर्मिता की विजय हुई। राक्षस दिव्य रूप में प्रकट हुआ और प्रसन्न होकर दो दिव्य कुण्डल अर्हन्नक को भेंट कर क्षमा माँग कर चला गया। ( अध्ययन ८ )
DEVOUT ARHANNAK
ILLUSTRATION : 23
Merchant Arhannak of Champa, with some other wealthy merchants, went sea-faring on the Lavana sea. Suddenly, on the high seas, there arose a terrible storm. The tremendous force of wind shattered the masts and sails and the ship started rocking. Suddenly the horizon was full of dense and thundering dark clouds. Besides these a giant and fearsome demonic shape appeared. This apparition asked Arhannak, “Lo! Arhannak, you and your friends today face your death. I will sink your ship in the sea. You will drown in the Lavana sea and become food of sea creatures. However, if you do as I say and go against the word of the Shramans by abandoning the vows you have taken, I shall leave you alone.”
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All the other passengers are afraid. Fearless Arhannak remains absorbed in his spiritual meditation with courage, serenity, stability, and silence. In the end his resolve wins. The demon appears in its true divine form, presents two pairs of divine earrings to Arhannak, seeks pardon and departs.
JNATA DHARMA KATHANGA SŪTRA
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(CHAPTER-8)
Dada
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