Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 466
________________ ( ३९६ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Camso RAMMAR DIOGO OGARAM KArs "एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गा जाव पव्वयामि, तं तुब्भे णं किं करेह ? किं ववसह ? किं भे हियइच्छिए सामत्थे ?" सूत्र १३३. फिर अर्हत् मल्ली ने उनसे कहा-“हे देवानुप्रियो ! मैं संसार-भय से उद्विग्न हो गई हूँ अतः प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहती हूँ। आप लोग क्या करना चाहेंगे? किस प्रकार रहेंगे? आपकी भावना और सामर्थ्य की क्या दिशा है?" RESOLVE TO RENOUNCE THE WORLD ___133. Arhat Malli then addressed them, “Beloved of gods ! The fear of rebirths plagues me and so I want to renounce the world. What would you like to do? How would you live? What is the direction and state of your feelings and capacity?" सूत्र १३४. तए णं जितसतुपामोक्खा छप्पि य रायाणो मल्लिं अरहं एवं वयासी"जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विगा जाव पव्वयह, अम्हाणं देवाणुप्पिया ! के अण्णे आलंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा ? जह चेव णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे अम्ह इओ तच्चे भवग्गहणे बहुसु कज्जेसु य मेढी पमाणं जाव धम्मधुरा होत्था, तहा चेव णं देवाणुप्पिया ! इण्हिं पि जाव भविस्सह। अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गा जाव भीया जम्ममरणाणं देवाणुप्पियाणं सद्धिं मुंडा भवित्ता जाव पव्वयामो।" ___ सूत्र १३४. जितशत्रु आदि राजाओं ने उत्तर दिया-“हे देवानुप्रिये ! यदि आप उक्त कारण से दीक्षा ले रही हैं तो हमारे लिये अन्य कोई आलंबन, आधार अथवा प्रतिबन्ध नहीं है। जिस प्रकार पूर्वभवों में अनेक क्षेत्रों में आप हमारी मेढी, प्रमाण और धर्मधुरा थीं उसी प्रकार आज भी बनें। हे देवानुप्रिये ! हम भी संसार-भय से उद्विग्न हैं अतः आपके साथ ही मुंडित होकर हम सभी दीक्षा लेने को तत्पर हैं।" ___134. Jitshatru and other kings replied, “Beloved of gods ! If you are renouncing the world for the said reason we shall be left with no support, base, or restraint. You should become our friend guide and inspiration as you were in our earlier incarnations. Beloved of gods ! we are also plagued by the fear of rebirths; as such we too are ready to shave and renounce the world along with you." सूत्र १३५. तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-"जं णं तुब्भे संसारभयउव्विग्गा जाव मए सद्धिं पव्वयह, तं गच्छह णं तुझे देवाणुप्पिया ! सएहिं सएहिं रज्जेहिं जेढे पुत्ते रज्जे ठावेह, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूहह। दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह। அs JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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