Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 467
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३९७ ) OM DAR सूत्र १३५. अर्हत् मल्ली ने कहा-“यदि आप सभी मेरे साथ दीक्षित होना चाहते हैं तो प्रस्थान करें और अपने-अपने राज्य में अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सौंप कर पुरिससहस्रवाहिनी पालकी पर सवार होकर मेरे पास लौट आवें।" ___135. Arhat Malli said, "If you want to get initiated with me please return to your kingdoms, hand over the kingdoms to your elder sons, and come back to me riding the Purisasahassa palanquins." सूत्र १३६. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लिस्स अरहओ एयम8 पडिसुणेति। तए णं मल्ली अरहा ते जितसत्तुपामोक्खे गहाय जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडेइ। तए णं कुंभए राया ते जियसत्तुपामोक्खे विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फ-वत्थ-गंध-मल्ल-लंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं जियसत्तुपामोक्खा कुंभएणं रण्णा विसज्जिया समाणा जेणेव साइं साई रज्जाई, जेणेव नयराइं, तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता सयाइं सयाइं रज्जाई उवसंपज्जित्ता णं विहरंति। सूत्र १३६. छहों राजाओं ने अर्हत् मल्ली की यह बात स्वीकार कर ली। अर्हत् मल्ली उन्हें साथ लेकर राजा कुंभ के पास आई और उनसे राजा कुम्भ के चरणों में प्रणाम करवाया। राजा कुम्भ ने जितशत्रु आदि राजाओं का यथोचित स्वागत-सत्कार किया भोजन आदि कराया और सम्मान सहित उन्हें विदा किया। छहों राजा अपने-अपने राज्यों में लौट गये और सुखपूर्वक रहने लगे। 136. All the kings accepted this suggestion from Arhat Malli. She brought them to King Kumbh and made them touch his feet. King Kumbh greeted them, served them food, and suitably honoured them before bidding them farewell. The kings returned to their kingdoms and resumed their routine life happily. सूत्र १३७. तए णं मल्ली अरहा “संवच्छरावसाणे निक्खमिस्सामि" त्ति मणं पहारेइ। सूत्र १३७. इधर अर्हत् मल्ली ने यह संकल्प किया कि “मैं आज से एक वर्ष पूरा होने पर दीक्षा ग्रहण कर लूंगी।" - RAMILA शरी CHAPTER-8 : MALLĪ (39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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