Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 433
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३६५) althO पर KING SHANKH OF KASHI 79. During that period of time there was a country named Kashi and its capital was Varanasi city. King Shankh ruled there. सूत्र ८0. तए णं तीसे मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए अन्नया कयाइं तस्स दिव्वस्स कुंडल-जुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था। ___तए णं कुंभए राया सुवन्नगारसेणिं सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! इमस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधिं संघाडेह।" सूत्र ८0. एक बार मल्लीकुमारी के उन दिव्य कुण्डलों का एक जोड़ खुल गया। राजा कुंभ ने सुनारों के संघ को बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! इस कुंडल के जोड़ को झाल लगाकर ठीक कर दो।" 80. Once, a joint in one of Princess Malli's divine earrings broke. King Kumbh summoned the guild of goldsmiths and said, “Beloved of gods! Braze the broken joint and set this earring right." सूत्र ८१. तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमढें तह त्ति पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगारभिसियासु णिवेसेइ, णिवेसित्ता बहूहिं आएहिं य जाव परिणामेमाणा इच्छंति तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधिं घडित्तए, नो चेव णं संचाएंति संघडित्तए। तए णं सा सुवन्नगारसेणी जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल० जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! अज्ज तुब्भे अम्हे सद्दावेह। सद्दावेत्ता जाव संधि संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं अम्हे तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हामो। जेणेव सुवन्नगारभिसियाओ जाव नो संचाएमो संघाडित्तए। तए णं अम्हे सामी ! एयस्स दिव्वस्स कुंडलस्स अन्नं सरिसयं कुंडलजुयलं घडेमो।" __ सूत्र ८१. सुनारों ने 'जो आज्ञा' कहकर वे कुण्डल ले लिये और अपने कारखाने चले गये। वहाँ आकर उन्होंने अनेक प्रकार से उन्हें झालने की पूरी चेष्टा की पर वैसा नहीं कर सके। निराश हो वे राजा के पास लौटे, हाथ जोड़कर अभिनन्दन किया और बोले-“हे स्वामी ! आज आपने हमें बुलाकर कुण्डलों को ठीक कर लाने की आज्ञा दी थी। हमने इन कुण्डलों को कारखाने ले जाकर झाल लगाने की बहुत चेष्टा की, किन्तु सफल न हो सके। अतः यदि महाराज की आज्ञा हो तो हम ऐसी ही नई जोडी बनाकर ला देवें।" CHAPTER-8 : MALLI (365) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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