Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 445
________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ( ३७७) Camg ARA PosmewINE.SATNISE ISHRA and bathing at a place of pilgrimage to various important citizens of the town including the king. सूत्र १०२. तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया अन्नया कयाई तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गिण्हइ, गिण्हित्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पविरलपरिव्वाइया सद्धिं संपरिवुडा मिहिलं रायहाणिं मझमज्झेणं जेणेव कुंभगस्स रण्णो भवणे, जेणेव कण्णंतेउरे, जेणेव मल्ली विदेहवररायकन्ना, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता उदयपरिफासियाए, दब्भोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयति, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरइ। सूत्र १०२. एक बार चोक्खा अपने हाथ में त्रिदण्ड, कमण्डल आदि लिये गेरुए वस्त्र पहने अपने मठ से निकली और कुछ परिव्राजिकाओं के साथ नगर के बीच से राजभवन की ओर गई। वहाँ पहुँचकर वह अंतःपुर में मल्लीकुमारी के पास गई। भूमि पर पानी छिड़का, घास बिछाई और उस पर आसन बिछाकर बैठ गई। उसने मल्लीकुमारी को अपने शौचादि धर्म का उपदेश देना आरंभ कर दिया। ____102. One day, carrying her trident, gourd-pot, and wearing her ochre coloured dress, Chokkha left her abode and entered the palace along with her disciples. She straight-away came to the inner part where Princess Malli stayed. She sprinkled some water on the floor, spread some hay and her mattress and sat down. After this she started her usual preaching of the religion of cleansing (etc.). __ सूत्र १०३. तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी"तुब्भं णं चोक्खे ! किंमूलए धम्मे पनत्ते ?" ___तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी-"अम्हं णं देवाणप्पिया ! सोयमूलए धम्मे पण्णवेमि, जं णं अम्हं किंचि असुई भवइ, तं णं उदएण य मट्टियाए य जाव अविग्घेणं सग्गं गच्छामो।" सूत्र १०३. इस पर विदेहकुमारी ने प्रश्न किया-“चोक्खा ! तुम्हारे धर्म का मूल क्या कहा गया है ?" ___ चोक्खा ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिये ! मैं शौच मूलक धर्म का उपदेश देती हूँ। हमारे मत में प्रत्येक अशुचि को जल और मिट्टी से शुद्ध किया जाता है। इसी प्रकार जलाभिषेक म जीव पवित्र हो जाता है। अंततः इस धर्म पालन से ही जीव निर्विघ्न स्वर्ग को प्राप्त करता है।" 010 போல் Loshog - 15 CHAPTER-8: MALLI (377) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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