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" एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जाव णिच्छूढा, तं सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्हं कुंभगस्स जत्तं गेण्हित्तए" त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स मट्ठ पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता व्हाया सण्णद्धा हत्थिखंधवरगया सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणा महयाहय-गय-रह-पवरजोह - कलियाए चाउरंगिणीए सेणा सद्धिं संपरिवुडा सव्विढीए जाव दुंदुभिनाइयरवेणं सहिंतो सएहिंतो नगरेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता एगयओ मिलायंति, मिलाइत्ता जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए । "
सूत्र ११७. जितशत्रु आदि छहों राजा अपने-अपने दूतों की यह बात सुन-समझकर अत्यन्त कुपित हो गये । उन्होंने परस्पर एक-दूसरे के पास दूत भेजे और कहलवाया - " हे देवानुप्रिय ! हम छहों राजाओं के दूतों के साथ मिथिला में एक-सा व्यवहार कर उन्हें वहाँ से निकाल दिया गया है। अतः हमें कुम्भ राजा पर चढ़ाई कर देनी चाहिए ।" सभी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिर वे स्नानादि से निवृत्त हो वस्त्रादि पहन कवच - शस्त्रादि धारण कर तैयार हो गये । छत्र - चामर सहित हाथी पर सवार हो चतुरंगिनी सेना और अपने समस्त वैभव के साथ दुंदुभि की ध्वनि करते अपने-अपने नगरों से निकले। सब एक स्थान पर एकत्र हुए और मिथिला की ओर प्रयाण किया ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
WAR PREPARATIONS
117. Hearing about the treatment accorded to their emissaries by King Kumbh, all the six kings were enraged. They at once sent their representatives to each other with the message, "Beloved of gods! King Kumbh has ill-treated all our emissaries and turned them out from his court. As such, we all should declare war against him and march." Everyone of them welcomed the proposal. They got ready with armours and weapons and riding elephants, with umbrellas and whisks and other regalia they came out of their cities. With all pomp and show and beats of war-drums they joined their four pronged armies. All the six armies rendezvoused at a place and together the started their march to Mithila.
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सूत्र ११८. तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लट्ठे समाणे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - " खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हयगयरहपवर जोहकलियं सेण्णं सन्नाह।" जाव पच्चप्पिणंति ।
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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