Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 456
________________ ( ३८८ ) उन छहों राजाओं ने मिलकर कुंभ राजा की सेना का हनन-मंथन किया। उसके श्रेष्ठ योद्धाओं का घात किया। उसके ध्वजा आदि राजचिन्हों को छिन्न-भिन्न करके नीचे गिरा दिया। कुंभ के प्राण संकट में पड़ गये और उसकी सेना में भगदड़ मच गई। इस प्रकार सामर्थ्यविहीन, बलहीन और निर्वीर्य होकर कुंभ राजा पूरे वेग के साथ मिथिला नगरी लौट आया और द्वार बन्द करके किले की रक्षा में जुट गया। DEFEAT OF KUMBH 120. After sometime all the warring kings arrived and the battle started. The combined army of the six kings mauled and overwhelmed King Kumbh's army. The best of his warriors were killed. His flag and regalia were shattered and sent to dust. Kumbh's army was in shambles and it started a quick retreat. Kumbh's own life was in danger. Loosing all his power, glory, and vigour he rushed away from the battle. He entered Mithila and at once got the gates closed. The hectic preparations for protecting the city started. मिथिला का घेराव ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र १२१. तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणिं णिस्संचारं णिरुच्चारं सव्वओ समंता ओभित्ताणं चिट्ठति । तणं कुंभ राया मिलिं रायहाणिं रुद्धं जाणित्ता अब्भंतरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासण-वरगए सिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य अलभमाणे बहूहिं आएहि य उवाएहि य उष्पित्तियाहि य ४ बुद्धीहिं परिणामेमाणे परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियाय । सूत्र १२१. जितशत्रु आदि छहों राजाओं की सेनाएँ मिथिला नगरी पहुँचीं और वहाँ से मनुष्यों के आवागमन को रोक दिया। नित्य व्यवहार में भी अवरोध पड़े इस प्रकार नगर के चारों ओर घेरा डाल दिया। Jain Education International राजा कुंभ अपनी राजधानी को चारों ओर से घिरा जान अपने भीतरी सभा स्थल में जा सिंहासन पर बैठ गया। वह जितशत्रु आदि राजाओं के छिद्र, विवर (दुर्बलता) और मर्म को नहीं समझ सका । अनेक उपाय और उत्पतिया आदि चतुर्यामी बुद्धि का उपयोग करने पर भी उसे कोई उपाय नहीं सूझा। तब उसका धैर्य टूट गया और हथेली में मुँह टिकाये वह चिन्तामग्न हो गया । (388) JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only डाक www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492